हाल ही में सतलोक आश्रम हिंसा मामले में संत रामपाल सहित 23 लोगों को बरी किया गया. तीन लोगों को आरोपी मानते हुए दो-दो साल कैद की सजा सुनाई गई है. साथ ही उन पर 5-5 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है. बता दें 12 जुलाई 2006 में आश्रम में हिंसा हुई थी. संत रामपाल पर करौंथा आश्रम में हुई हिंसा के मामले में धारा 302, 307, 323 के अलावा कई अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. फिलहाल रामपाल के भाई महेंद्र दास पर अभी भी केस चल रहा है. संत बनने से लेकर अपराध की सारी गाथा आज सुनाएंगे।

गौरतलब है कि संत रामपाल के बंदी छोड़ भक्ति मुक्ति ट्रस्ट ने गांव करौंथा में सतलोक आश्रम खोला था. इसका आर्य समाजियों और आस-पास के ग्रामीणों ने विरोध किया. संत रामपाल की आर्य समाज पर की गई टिप्पणी के बाद 12 जुलाई 2006 को सतलोक आश्रम को हजारों लोगों ने घेर लिया था. संत रामपाल के वकील जयप्रकाश ने बताया कि इस दौरान हुई झड़प में 64 लोग घायल हुए थे और एक व्यक्ति की जान चली गई थी. मृतक की मौत संबंधी सबूत न मिलने के चलते ही संत रामपाल सहित अन्य 23 आरोपियों को बरी किया गया है……जूनियर इंजीनियर से संत तक का सफर, हरियाणा के सोनीपत के गोहाना तहसील के धनाना गांव में पैदा हुए रामपाल हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर थे. स्वामी रामदेवानंद महाराज के शिष्य बनने के बाद नौकरी छोड़ प्रवचन देना शुरू किया था. बाद के दिनों में कबीर पंथ को मानने लगे और अपने अनुयायी बनाने में जुट गए….बाबा की जिंदगी के खास पहलू, रामपाल दास ने 17 फरवरी सन 1988 को कबीर पंथी स्वामी जी को अपना पहला व अंतिम गुरू मान लिया था. यह बात थी सन 1988 के फाल्गुन महीने की अमावस्या की रात्रि की. जब रामपाल ने दीक्षा ग्रहण की थी. बाद में इसी दिन को रामपाल अपना असली जन्मदिन भी मनाने-बताने लगे. 71 साल के बाबा रामपाल की उस वक्त उम्र रही होगी यही कोई 37-38 साल. रामपाल के भक्त इस दिवस को बोध-दिवस के रूप में आज भी मनाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि सन 1993 में रामपाल के गुरु जी ने रामपाल को सत्संग करने की अनुमति दी तब तो समझिए उसके अरमानों को मानों पंख ही मिल गए. उसके अगले ही साल यानी सन 1994 में नामदान करने की भी इजाजत रामपाल को उसके गुरु ने दे दी और उसी साल कथित रूप से गुरु व उसके स्वामी रामपाल को अपना उत्तराधिकारी बना डाला…..करोंथा गांव के अड्डे पर पहली चढ़ाई, करोंथा गांव में आश्रम खोले हुए बाबा को, अभी पांच छह साल ही गुजरे होंगे कि उसे पुलिस ने घेरकर गिरफ्तार कर लिया. यह बात है 12 जुलाई सन 2006 की. समाज के एक वर्ग ने इसके अड्डे पर चढ़ाई कर दी. बवाल काबू करने के लिए मौके पर मौजूद मूकदर्शी पुलिस ने तब बवाल के शुरुआती दौर में धारा-144 लगा दी और तमाशबीन की भूमिका में खड़ी रही. जबकि दूसरी ओर अड्डे पर चढ़ाई कर रही भीड़ और रामपाल समर्थक दोनो ही पक्ष खूनी मारकाट पर उतर आए. खूब गोलियां चलीं. सैकड़ों बुजुर्गों, महिलाओं बच्चों की जान जोखिम में घंटों पड़ी रही. जब पुलिस को लगा कि अब भीड़ उसी को घेर लेगी, तब पुलिस ने रामपाल को गिरफ्तार किया. हालांकि उस दौरान रामपाल के समर्थकों ने पुलिस से हिंसक झड़प की जिसमें करीब 120 लोग घायल हो गए थे. पुलिस और अर्धसैनिक बलों को जवानों ने 12 दिनों बाद उन्हें गिरफ्तार किया. इस दौरान सतलोक आश्रम से पांच महिलाओं और एक बच्चे की लाश भी मिली थी.
18 दिन की लुकाछिपी के अंतिम दो दिनों की खूनी टक्कर लेने के बाद, अंतत: सतलोक अड्डे के रामपाल दास को हरियाणा पुलिस ने दबोच ही लिया. कई पुलिस जवानों, पत्रकारों, आमजनों सहित 100 से ज्यादा लोग बुरी तरह जख्मी हो गए. कोर्ट कचहरी और पुलिसिया दस्तावेजों में दर्ज मजमून के मुताबिक, जिस वक्त रामपाल के अड्डे के अंदर-बाहर उसके अंधभक्तों और हरियाणा पुलिस के बीच खूनी जंग छिड़ी हुई थी, तब रामपाल अड्डे के अंदर ही छिपा हुआ था. वो अपने भक्तों को पुलिस के सामने सरेंडर करने-कराने के बजाए उन्हें, पुलिस से खूनी टक्कर लेने के लिए उकसा रहा था. इस बाबा के अड्डे में जब पुलिस घुसी तो अंदर का मंजर देखकर पुलिस चकरा गई. खुद को संत बताने वाला और खुद को कबीर का अनुयायी बताने वाला रामपाल तो काफी खतरनाक निकला. वरना भला किसी संत या बाबा के आश्रम से पुलिस को बम, हथियार, तेजाब या उसके जैसी अन्य तमाम संदिग्ध चीजें कैसे मिलतीं?…
जब मुजरिम करार दिया गया, उस बवाल के दौरान दर्ज मुकदमों में से एक में रामपाल को बरी कर दिया गया. इसके बाद भी मगर उसके खिलाफ देशद्रोह और हत्या जैसी संगीन धाराओं में बाकी मुकदमे चले. जिनमें बाद में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. जिस बाबा रामपाल के पीछे उसके लाखों अनुयायी दण्डवत किया करते थे. 11 अक्टूबर सन 2018 को हिसार कोर्ट ने उन्हे उम्रकैद की सजा सुनाकर मुजरिम करार दिया. हालांकि मुकदमा जब आगे चला तब 26 जुलाई सन 2021 को हिसार कोर्ट के जज ने रामपाल और उसके चार अनुयायियों को बरी कर दिया. चूंकि बीते कल के इस बाबा को अन्य धाराओं में उम्रकैद की सजा भी सुनाई जा चुकी थी. इसलिए उसे जेल से बाहर आने का मौका नहीं मिला. यहां यह भी बताना जरूरी है कि रामपाल पर सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने, आश्रम में बेकसूर-निरीह लोगों को बंधक बनाने का मुकदमा दर्ज हुआ था. रामपाल दास से बाबा रामपाल बने इस शख्स को हरियाणा पुलिस ने 20 नवंबर 2014 को पकड़ा था….
विवादित संत पर ताबड़तोड़ मुकदमे,हिसार कोर्ट के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) डॉक्टर चालिया ने सन 2014 के हत्या के एक मामले में सजा सुनाई थी. यह फैसला हरियाणा के थाना बरवाला इलाके में स्थित सतलोक आश्रम प्रकरण में हत्या के मुकदमा नंबर 429 और 430 में सुनाया गया था. बाबा के खिलाफ पुलिस ने सरकारी कामकाज में बाधा डालने के लिए हमला, हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण, बंधक बनाने जैसी संगीन धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए थे. रामपाल के साथ 900 से ज्यादा मुलजिम बनाए गए थे. जबकि उसके खिलाफ 400 से ज्यादा गवाह हरियाणा पुलिस ने बनाए….बाबा को बेनकाब करने में करोड़ों खर्च!,मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रामपाल दास को दबोचने के लिए तब किए गए भागीरथी प्रयासों में, हरियाणा पुलिस को करीब करोड़ों रुपया स्वाहा करना पड़ा गया था! हालांकि हरियाणा राज्य पुलिस ने इसकी पुष्टि कभी नहीं की. बरवाला खूनी कांड से पहले भी बाबा करौंथा आश्रम कांड में 22 महीने की जेल काट चुका था. इस बाबा का अतीत देखा जाए तो वो अक्सर ही आर्य समाज और उसके अनुयायियों को बदनाम करते रहने के आरोप लगते रहे हैं. इसलिए रामपाल आर्य समाजियों के भी निशाने पर रहता था.
कसूर आखिर किसका, गलती अकेले बाबा की नही,“ताली दोनो हाथों से बजती है. बाबा को बड़ा आदमी और खुद को कंगाल बनाने में हमारा खुद का ही हाथ होता है. दूसरों के सिर पर ठीकरा फोड़ने से क्या फायदा? यह सब बातें जिम्मेदारी से बचने की होती हैं कि, हम फलां बाबा-साधू के चक्कर में फंसकर बर्बाद हो गए. उसने हमें लूट लिया. उस महात्मा ने आश्रम में बुलाकर हमें सम्मोहित कर दिया. कोई बाबा किसी को घर-घर बुलाने नहीं जाता है. पहली बात तो इन बाबाओं को पूजा के काबिल ही हम बनाते हैं. जब हमें ही यह लूटना शुरु कर देते हैं तो, हम ही अपनी बर्बादी का ठीकरा या जिम्मेदारी, इन बाबाओं के सिर लादना शुरु कर देते हैं. सवाल यह है कि आखिर इन बाबाओं की गली-गली गांव गांव गद्दियां स्थापित कौन कराता है? जब जनता में से ही कुछ लोग इन्हें भगवान बनाने पर तुले हों तब फिर, इन्हें काबू कौन करेगा? आसाराम बापू से लेकर सतलोक वाले रामपाल दास और इनके जैसे और भी तमाम तक को देख लो. बाबाओं को कोसने-दबोचने से पहले हमें उनको पकड़ना चाहिए जो, ऐसों को बाबा बनाकर अपनी और कानून दोनो की सिरदर्दी बनते हैं. मैं पहले इन बाबाओं को “बाबा” बनाने वालों को दोषी मानता हूं. उसके बाद ‘बाबा’ तो जो कुछ करते हैं वो जब पकड़े जाते हैं तो जमाने के सामने आ ही जाता है.”