आज हम दोबारा से दो ऐसे भाईयों की कहानी लेकर आए हैं जो हमेशा से विवादित और बहुचर्चित रहे हैं और हरियाणा की राजनीति में उनका बोलबाला रहा है। बात कर रहे हैं गोपाल कांडा और उनके छोटे भाई गोविंद कांडा की। गोपाल कांडा के बारे में तो चर्चा हम कर चुके लिहाजा आज हम जानेंगे उनके छोटे भाई गोविंद कांडा के बारे में, जो कि इन दिनों भाजपा में हैं। आज जानेंगे कि कैसे उन्होंने भाई के साथ कंधा मिलाकर व्यापार में नाम कमाया और कैसे फिर वह भाई के ही पद चिन्हों पर राजनीति में आकर। अब आगे बढ़ रहे हैं। गोविंद कांडा का जन्म 5 अक्टूर 1967 को सिरसा में हुआ था। गोविंद अपने भाई और पिता की ही तरह समाजाकि कार्यो में आगे रहा करते है ओर 2014 में राजनीति में कदम रखते हैं।

साल 2021 अक्टूबर के महीने में गोविंद कांडा भाजपा में शामिल हुए थे। ऐलनाबाद उपचुनाव के दौरान ही गोविंद कांडा भाजपा में शामिल हुए थे। गोबिंद कांडा सिरसा में पूरी तरह से सक्रिय है। बाबा तारा कुटिया के सेवक के तौर पर वे धार्मिक आयोजनों में भाग लेते रहते हैं। इसके अलावा बड़े भाई गोपाल कांडा की गैर मौजूदगी में राजनीति में भी पूरी सक्रियता दिखाते हैं। रानिया सीट से दो बार चुनाव लड़ चुके हैं गोविंद कांडा , गोबिंद कांडा रानियां विधानसभा सीट से दो बार चुनाव लड़ चुके हैं। हरियाणा लोकहित पार्टी के उम्मीदवार के तौर वे साल 2014 और साल 2019 में चुनाव लड़ चुके हैं। दोनों बार ही वे दूसरे स्थान पर रहे हैं। साल 2019 में रानियां सीट से आजाद उम्मीद्वार चौ. रणजीत सिंह विजयी रहे थे, उन्हें 53 हजार के करीब वोट मिले थे जबकि गोबिंद कांडा को 33 हजार के करीब वोट मिले थे और वे 19 हजार वोटों के अंतर से हार गए थे। जबकि साल 2014 में गोबिंद कांडा को इनेलो प्रत्याशी रामचंद कंबोज ने हराया था। उस चुनाव में रामचंद कंबोज को 43 हजार वोट मिले थे जबकि गोबिंद कांडा को 39 हजार वोट मिले थे और वे 4 हजार वोटों के अंतर से हारे थे।

महज़ 1 महीने के ही प्रचार में जुटाए थे 33 हजार वोट, गोविंद कांडा ने साल 2014 में हरियाणा की सक्रिय सियासत में कदम रखा था। विधानसभा चुनाव के दौरान वे सिरसा की रानिया सीट से मैदान में उतरे थे। हरियाणा लोकहित पार्टी की तरफ से वे मैदान में उतरे थे और पहली ही बार में गोबिंद कांडा को 33 हजार के करीब वोट मिले थे, जो कि अपने आप में ही बड़ी बात है। क्योंकि प्रचार के लिए उनके पास महज़ 30 दिन का समय ही बाकी बचा था। महज 30 दिनों में 40 हजार के करीब वोट जुटा लेना किसी नेता के लिए अपने आप में ही बड़ी बात होती है और वो भी तब जब आप पहली ही बार सियासत में उतरे हों।

चुनावी प्रबंधन का काम भी कर चुके हैं गोविंद कांडा
गोविंद कांडा सियासत में कदम रखने से पहले चुनावी प्रबंधन का काम भी कर चुके हैं। वे अपने बड़े भाई गोविंद कांडा के लिए चुनाव मैनजमेंट का काम किया करते थे। मैनजमेंट के तौर पर गोविंद कांडा ने बेहतरीन काम किया। साल 2009 में बड़े भाई गोपाल कांडा का चुनावी प्रबंधन देखा। उस दौरान गोपाल कांडा सिरसा सीट से आजाद विधायक के रूप में चुने गए और बाद में वे कांग्रेस की सरकार में गृह मंत्री भी बने। एक दर्जन से अधिक संस्थानों से जुड़े हैं गोविंद कांडा, गोविंद कांडा राजनीति के अलावा एक दर्जन से अधिक संस्थानों से जुड़े हुए हैं। वे एमडीएलआर ग्रुप, एमडीके ग्रुप ऑफ इंस्टीटयूट, महागौरी फूड प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक भी हैं। हरियाणा लोकहित पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे। जनसंघ से जुड़े हुए थे गोविंद कांडा के पिता, ये अपने आप में ही रोचक बात है कि गोबिंद कांडा के पिता मुरलीधर कांडा आरएसएस से जुडे हुए थे।

वे संघ की विचारधार को मानते थे। आज़ादी के बाद साल 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में जनसंघ की टिकट पर मुरलीधर कांडा ने डबवाली से चुनाव भी लड़ा था। जनसंघी के रूप में उन्होंने बाकमाल काम भी किए। मुरलीधर अपने समय के जानेमाने अधिवक्ता थे। वे 4 बार एसोसिएशन सिरसा के अध्यक्ष भी रहे। ऐसा कहा जाता है कि समाजसेवा के कामों में भी मुरलीधर सबसे आगे रहा करते थे। बड़े भाई गोपाल कांडा की वजह से भाजपा से हुई नजदीकी! , उनके बड़े भाई गोपाल कांडा हरियाणा की भाजपा सरकार को समर्थन दे चुके हैं। गोपाल कांडा की प्रदेश सरकार से निकटता के चलते ही गोबिंद कांडा भी भाजपा से करीबी रहे ओर साल 2021 में वे भाजपा में शामिल हो गए। ऐलानाबाद चुनाव से ठीक पहले गोविंद कांडा का भाजपा में जाना नए राजनीति समीकरणों की रेखा खींचने लगा था। क्योंकि गोविंद कांडा को भाजपा ने प्रत्याषी ने जो बनाया था।

ऐलनाबाद में मिली हार को बताया था अपनी जीत, गोविंद कांडा के लिए भाजपा- जजपा ने प्रचार तो जीतोड़ कर किया था। लेकिन वे जीत नहीं पाए। तो वहीं गोविंद कांडा ने इस जीत के बाद बयान दिया था और कहा था कि चुनाव में इतने वोटों का मिलना मैं हार नहीं मानता हूं बल्कि अपनी जीत ही मानता हूं। यहां के लोगों के साथ सदा खड़ा रहूंगा और उनके काम सरकार से करवाउंगा। गोविंद कांडा ने ये भी कहा था कि चुनाव में भाजपा की नीयत और नीति मतदाताओं के समक्ष रखी, मतदाताओं ने जो फैसला दिया है, वह उन्हें स्वीकार है। जनता ही लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करती है। मतदाताओं ने उन्हें बड़ी संख्या में वोट दिए। जिसके लिए वे उनके आभारी हैं।

गोविंद कांडा का विवादों से रहा नाता, लोकप्रिय नेता होने के साथ कई बार उन्हे लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। बात ऐलनाबाद उपचुनाव की है। जब वे भाजपा प्रत्याषी के तौर पर उतरे थे और प्रचार के लिए मैदान में उतरे थे। गुरुद्वारा सिंह सभा में माथा टेकने पहुंचे गोविंद कांडा को किसानों ने गुरुद्वारे से ही बाहर निकाल दिया था। किसानों ने कांडा के साथ मौजूद भाजपा की ऐलनाबाद शहरी इकाई के प्रधान जसवीर सिंह चहल को भी बाहर कर दिया था। मौके की नजाकत को भांपते हुए गोविंद कांडा के निजी सुरक्षाकर्मी उन्हें वहां से निकालकर ले गए थे।

जब सपना चौधरी ने प्रचार से कर दिया था इंकार, सपना चौधरी को कौन नहीं जानता। अपने डांस वीडियोज को लेकर अकसर चर्चा में रहने वाली सपना चौधरी ने गोविंद कांडा के लिए चुनाव प्रचार करने से इंकार कर दिया था। दरअसल हरियाणा में जब ऐलनाबाद के चुनाव थे तो ठीक उसी समय हरियाणा में किसान आंदोलन भी चल रहा था। तब सपना चौधरी ने अपनी पॉपुलैरिटी और भाजपा के खिलाफ उठी विरोध की लहर को देखते हुए प्रचार से इंकार कर दिया था। जबकि उसी सपना चौधरी ने पहले तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट से गोविंद कांडा के लिए प्रचार करने का ऐलान किया था। उनके पति वीर साहू ने भी प्रचार करने की बात कही थी। एक वीडियो जारी कर दोनों ने ही गोविंद कांडा को वोट देने की अपील की थी। लेकिन फिर किसानो के बढ़ते विरोध के बाद से सपना चौधरी और उनके पति वीर साहू चुनाव प्रचार से दूर हो गए थे।

सिरसा में भाजपा से ज्यादा सक्रिय गोविंद कांडा, सिरसा में नगर परिषद के चुनावों को लेकर सरकार ने फिल्हाल कोई घोषणा नहीं की है। शहर की वार्डबंदी को लेकर मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में विचाराधीन है। लेकिन सिरसा के विधायक गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी ने चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी है। उन्होंने चुनाव लड़ने के इच्छुक अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं से आवेदन भी मांगने शुरू कर दिए है। पार्टी के पास 31 वार्डों के लिए करीब 50 और चेयरमैन के लिए 10 आवेदन आए है। बड़ी बात तो ये ह कि हलोपा की ओर से उनके लिए भी आवेदन मांगे गए हैं जो कि भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।

दागी होने के बावजूद कांडा परिवार को मानते हैं लोग, हरियाणा की राजनीति के लिए ये अपने आप में ही बड़ी बात है कि कांडा परिवार से ये दोनों ही भाई राजनीति में चढ़ाई करते जा रहे हैं। और पूरे हरियाणा में इनकी धमक कायम है। वो इसलिए भी क्योंकि लोगों को यह भी पता है कि कांडा परिवार के पास पैसा व रसूख दोनों ही है। कांडा परिवार सामाजिक और धार्मिक भी है। गोविंद कांडा धीरे-धीरे राजनीति में परिपक्व होते जा रहे हैं और 1 दिन राजनीति के शीर्ष पर वह जरूर पहुंचेंगे क्योंकि उन्हें मेहनत करना आता है लोगों को साधना आता है और जमीन से जुड़े हुए वह नेता है जो लगातार उन लोगों से सीधा संवाद करने में सफल हो रहे हैं।