नाम अटल बिहारी वाजपेयी… यथा नाम, तथा काम… यानि के अपने नाम की ही तरह अटल… अपने नाम के ही समान अटलजी एक राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे”। अटलजी जनता की बातों को ध्यान से सुनते थे और उनकी आकाँक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते थे। भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपाई देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो कि 4 राज्यो के 6 लोकसभा की नुमाइंदगी कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के लखनउ व बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर व विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी इकलौते नेता थे।…….अटल जी बेशक आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके किए काम और उनकी कविताएं एक तोहफे की तरह हमारे बीच में है। वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक विनम्र स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ। निजी जीवन में प्राप्त सफलता उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन है। पिछले कई दशकों में वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व देते रहे। महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थक वाजपेयी जी भारत को सभी राष्ट्रों के बीच एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे।…अटल बिहारी बाजपाई जी का प्रारंभिक जीवन, भारतीय इतिहास में तीन बार के प्रधानमंत्री रहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। 25 दिसंबर 1924 में मध्य प्रदेश जिले के ग्वालियर के एक गांव उनका जन्म हुआ था। बाजपाई जी का पैतृक गांव बटेश्वर है। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक और एक कवि भी थे। अटल जी के माता का नाम कृष्णा देवी वाजपेयी और उनके 7 भाई बहन भी थे।…वाजपेयी जी की स्कूल और कॉलेज का जीवन,वाजपेयी जी ने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा सरस्वती शिक्षा मंदिर, गोरखी, बाड़ा, विद्यालय से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने स्नातक की शिक्षा लक्ष्मीबाई कॉलेज से पूरी की और विधि स्नातक की डिग्री उन्होंने कानपुर में स्थित डीएवी कॉलेज से अर्थशास्त्र विषय में ली। अटल जी छात्र जीवन से ही राजनीतिक तथ्यों से संबंधित वाद विवाद में हिस्सा लेना पसंद करते थे और वे हमेशा ऐसी प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहते थे। आगे चलकर सन 1939 में अपने छात्र जीवन में उन्होंने स्वयंसेवक की भूमिका भी निभाई।…पत्रकार के रूप में शुरू किया था काम काज,वाजपेयी जी ने अपना करियर पत्रकार के रूप में शुरू किया था और 1951 में भारतीय जन संघ में शामिल होने के बाद उन्होंने पत्रकारिता छोड़ दी। आज की भारतीय जनता पार्टी को पहले भारती जन संघ के नाम से जाना जाता था, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का अभिन्न अंग है। उन्होंने कई कवितायेँ भी लिखी जिसे समीक्षकों द्वारा सराहा गया। राजनीतिक मामलों से समय निकालकर संगीत सुनने और खाना बनाने जैसे अपने शौक को पूरा किया करते थे।…अटल बिहारी बाजपाई जी का प्रारंभिक जीवन,भारतीय इतिहास में तीन बार के प्रधानमंत्री रहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। 25 दिसंबर 1924 में मध्य प्रदेश जिले के ग्वालियर के एक गांव उनका जन्म हुआ था। वाजपेयी जी का पैतृक गांव बटेश्वर है। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक और एक कवि भी थे। अटल जी के माता का नाम कृष्णा देवी वाजपेयी और उनके 7 भाई बहन भी थे।…वाजपेयी जी की स्कूली और कॉलेज का जीवन,वाजपेयी जी ने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा सरस्वती शिक्षा मंदिर, गोरखी, बाड़ा, विद्यालय से प्राप्त की। तारीख के बारे में तो कोई सही से जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके बाद उन्होंने स्नातक की शिक्षा लक्ष्मीबाई कॉलेज से पूरी की और विधि स्नातक की डिग्री उन्होंने कानपुर में स्थित डीएवी कॉलेज से अर्थशास्त्र विषय में ली। अटल जी छात्र जीवन से ही राजनीतिक तथ्यों से संबंधित वाद विवाद में हिस्सा लेना पसंद करते थे और वे हमेशा ऐसी प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहते थे। आगे चलकर सन 1939 अपने छात्र जीवन में उन्होंने स्वयंसेवक की भूमिका भी निभाई। उन्होंने हिंदी न्यूज़ पेपर में संपादक का काम भी किया।….छात्र जीवन के दौरान राष्ट्रवादी राजनीति का पकड़ा दामन, वाजपेयी जी ने अपने छात्र जीवन के दौरान पहली बार राष्ट्रवादी राजनीति में आए।जब उन्होंने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। वह राजनीति विज्ञान और विधि के छात्र थे। कॉलेज के दिनों में ही उनकी रुचि विदेशी मामलों के प्रति बढ़ी। उनकी यह रुचि वर्षों तक बनी रही एवं विभिन्न बहुपक्षीय और द्विपक्षीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने अपने इस कौशल का परिचय दिया।…अटल बिहारी वाजपेयी का राजनितिक सफर, सन 1942 में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की। जैसा की आप सभी को पता होगा उस समय भारत छोड़ो आंदोलन जोर शोर से चल रहा था और इसी दौरान उनके भाई को इस आंदोलन में गिरफ्तार कर लिया गया था। बाजपाई जी के भाई को 23 दिनों के लिए जेल कारावास में रहना पड़ा था, जिसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था। 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ तो श्‍यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ अटलबिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका रही। वर्ष 1952 में अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली। वे उत्तरप्रदेश की एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतरे थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार सफलता 1957 में मिली थी। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर वे लोकसभा पहुंचे।…जब बने पार्टी अध्यक्ष, इसके बाद उनकी उपलब्धि को देखते हुए पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। अटल जी 2 साल तक मोरारजी देसाई की सरकार में वर्ष 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे जिससे हमारे देश की प्रति विदेशों में एक विश्वासी देश की पृष्ठभूमि तैयार करने में उनका बहुत योगदान रहा।…जब बनी भाजपा पार्टी, सन 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी एक पार्टी का गठन किया, जो थी भारतीय जनता पार्टी थी और 6 अप्रैल 1980 को अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। लोकसभा चुनाव सन 1996 में भारतीय जनता पार्टी का देश भर में पहला विजय चुनाव रहा।
इस चुनाव से बीजेपी ने देश में पहली बार अपनी सरकार को स्थापित किया और मात्र 13 दिनों के लिए 6 मई से 21 जून 1996 तक देश के दसवें प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी ने शपथ ली।13 दिनों तक ही सरकार चलने के बाद अटल जी की सरकार गिर गई और फिर सन 1996 में सरकार गिरने के 2 साल बाद पार्टी सत्ता में आई और 19 मार्च 1998 में अटल जी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और फिर 10 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद के लिए शपथ ली।…जब एक वोट से गिरी थी बाजपाई सरकार, बात 1999 की है, जब लोकसभा वाजपेयी सरकार सिर्फ 13 महीने के बाद ही गिर गई थी। 1998 के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूरी तरह बहुमत नहीं मिला था लेकिन एआइएडीएमके के समर्थन से एनडीए ने केंद्र में सरकार बनाई थी, हालांकि 13 महीने के बाद अम्मा यानि के जयललिता ने समर्थन वापस ले लिया तो अटल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हो गया…जब कांग्रेस पर भारी पड़ी बाजपाई जी की ‘अटल’ वाणी ,दो दशक पहले जब एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी तब लोकसभा में कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने उनका उपहास किया था। साल 1999 13 महीने के बाद जब अटल जी की सरकार गिरी, तो फिर सदन मंे उस समय कांग्रेस के नेता भाजपा की खिल्ली उड़ा रहे थे। तब अटल जी ने कहा था कि ‘हम उस घड़ी की प्रतीक्षा करेंगे, जब हमें स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो। आज आप मेरा उपहास उड़ा लें लेकिन एक वक्त ऐसा आएगा जब लोग आपका उपहास उड़ाएंगे’’ लोकसभा में कांग्रेस को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी ने जो भविष्यवाणी की । वो वाकई मंे सच साबित भी हुई।…… राजधर्म का पालन, हर प्रधानमंत्री की तरह वाजपेयी के फ़ैसलों को अच्छे और ख़राब की कसौटी पर कसा जाता रहा है। लेकिन गुजरात में 2002 में हुए दंगे के दौरान एक सप्ताह तक उनकी चुप्पी को लेकर वाजपेयी की सबसे ज़्यादा आलोचना होती है। गोधरा कांड 26 फरवरी, 2002 से शुरू हुआ था और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी का पहला बयान तीन मार्च, 2002 को आया जब उन्होंने कहा कि गोधरा से अहमदाबाद तक जिस तरह से लोगों को ज़िंदा जलाया जा रहा है वो देश के माथे पर दाग़ है।लेकिन उन्होंने इसे रोकने के लिए ठोस क़दम नहीं उठाए। क़रीब एक महीने बाद चार अप्रैल, 2002 को वाजपेयी अहमदाबाद गए और वहां वाजपेयी बोले भी तो केवल इतना ही कहा कि मोदी को राजधर्म का पालन करना चाहिए।हालांकि वे खुद राजधर्म का पालन क्यों नहीं कर पाए, ये सवाल उठता रहा और संभवत ये बात वाजपेयी को भी सालती रही। उन्होंने बाद में कई मौकों पर ये ज़ाहिर किया कि वे चाहते थे मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफ़ा दे दें, 16 अगस्त, 2018 को वाजपेयी का निधन हो गया था, हालांकि वे अब नहीं हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी भारतीय राजनीति में हमेशा रहेगी।