दिल्ली चुनाव के आज नतीजे आए और जैसा अनुमान लगाया जा रहा था ठीक वैसा ही हुआ है। न केवल आम आदमी पार्टी (AAP)की हार हुई है बल्कि अरविंद केजरीवाल (Arvind kejriwal) भी चुनाव हार गए। बीजेपी (BJP) की 27 साल बाद दिल्ली में वापसी हो रही है। बीजेपी की जीत बहुत बड़ी है और इसमें कोई शंका नहीं लेकिन केजरीवाल और AAP की हार उससे भी कहीं बड़ी है। हार-जीत के कारणों पर आने वाले कई दिनों तक चर्चा होगी लेकिन एक बात यह भी है कि क्या अरविंद केजरीवाल खुद से ही हार गए। इस चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हो गया है कि केवल मुफ्त सुविधाएं देना ही काफी नहीं होता, बल्कि जनता को बुनियादी सुविधाओं की भी आवश्यकता होती है. अगर आम आदमी पार्टी भविष्य में वापसी करना चाहती है, तो उसे इन मुद्दों पर गंभीरता से काम करना होगा
अरविंद केजरीवाल ने एक Benchmark सेट किया। न केवल अपने लिए बल्कि अपनी पार्टी के लिए भी। दिल्ली और देश की राजनीति में केजरीवाल मॉडल की बड़ी चर्चा हुई। केजरीवाल मॉडल में बिजली-पानी तो था ही लेकिन सबसे बड़ी चीज थी वो बात कट्टर ईमानदारी। जिस पर शुरुआत में दिल्ली की जनता ने आंख मूंद कर विश्वास किया। राजनीति से इतर एक ऐसा इंसान राजनीति में आया जिसकी बात पर दिल्ली की जनता ने खूब विश्वास किया।
अब ऐसे में सवाल है कि फिर ऐसा क्या हुआ कि जिस पर दिल्ली की जनता ने पहले आंख मूंदकर विश्वास किया अब उन्हीं को हरा दिया। इसकी शुरुआत एक दो दिन में नहीं हुई। 2013 को छोड़ दें तो उसके बाद के दो चुनाव 2015 और 2020 के चुनाव में केजरीवाल के समर्थन में पूरी आंधी चली। जीत ऐसी जिसने देश की राजनीति में इतिहास दर्ज कर दिया। आमतौर पर ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि किसी एक दल को लगभग सभी सीटें मिल जाए। केजरीवाल की इस जीत से न केवल दिल्ली बल्कि दिल्ली के बाहर भी चर्चा हुई। अब इस चुनाव में ऐसा क्या हुआ कि अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी दोनों हार गए।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन न होना
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र चुनावों के दौरान ‘बंटे तो कटे’ का नारा दिया था, जो हिंदू एकता के संदर्भ में था. हालांकि, इस नारे से सीख लेते हुए अन्य पार्टियों ने भी अपने गठबंधन को मजबूत किया. लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक साथ नहीं आ सके. हरियाणा में कांग्रेस बहुत कम मार्जिन से सरकार बनाने से चूक गई थी, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में दोनों पार्टियां एक साथ नहीं आईं. इससे वोटों का विभाजन हुआ और बीजेपी को फायदा मिला
शीशमहल विवाद 
राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल ने वीवीआईपी कल्चर के खिलाफ आवाज उठाई थी और कहा था कि वे सरकारी सुविधाओं का उपयोग नहीं करेंगे. लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने न केवल सरकारी बंगले और गाड़ियों का उपयोग किया, बल्कि अपने लिए एक बेहद महंगा मुख्यमंत्री आवास भी बनवाया, जिसे मीडिया ने ‘शीशमहल’ का नाम दिया. सीएजी रिपोर्ट में भी उनके आवास पर हुए भारी खर्च पर सवाल उठाए गए. इससे उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका लगा, और जनता में उनके प्रति अविश्वास बढ़ गया.
आरोपों और झूठ से समर्थकों की नाराजगी
अरविंद केजरीवाल पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वे अपने विरोधियों पर बिना आधार के आरोप लगाते रहे हैं. इसके चलते कई बार उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी है, जिससे उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनती गई, जिसकी बातों पर भरोसा करना मुश्किल होता गया. सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब उन्होंने हरियाणा सरकार पर जानबूझकर दिल्ली को जहरीला पानी भेजने का आरोप लगाया. उन्होंने यह तक कहा कि हरियाणा सरकार दिल्ली में नरसंहार करना चाहती है. इस आरोप पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने खुद दिल्ली बॉर्डर पर जाकर यमुना का पानी पीकर इस दावे को गलत साबित किया. इससे न केवल उनके विरोधियों को मौका मिला बल्कि उनके हार्डकोर समर्थक भी नाराज हो गए.
महिलाओं के लिए 2100 रुपये योजना लागू न करना
झारखंड में झामूमो सरकार की जीत का एक प्रमुख कारण महिलाओं के लिए लागू की गई आर्थिक सहायता योजना को माना गया. दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं को हर महीने एक निश्चित राशि देने की योजना की घोषणा की थी, लेकिन इसे लागू नहीं कर पाए. इससे जनता में यह संदेश गया कि अगर वे इस योजना को चुनाव से पहले लागू नहीं कर सके, तो चुनाव जीतने के बाद भी इसे लागू करने में असफल हो सकते हैं. अगर यह योजना एक महीने पहले लागू कर दी गई होती, तो शायद परिणाम कुछ और हो सकते थे.
गंदे पानी की सप्लाई 
दिल्ली सरकार ने मुफ्त सुविधाओं की शुरुआत करके जनता का समर्थन पाया था, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी से जनता परेशान हो गई थी. सबसे बड़ा मुद्दा पानी की सप्लाई का था. गर्मियों में दिल्ली में लोग साफ पानी के लिए परेशान होते रहे, और टैंकर माफिया पूरी तरह हावी हो चुका था. अरविंद केजरीवाल ने 24 घंटे स्वच्छ जल सप्लाई का वादा किया था, लेकिन यह पूरा नहीं हुआ. इसके साथ ही राजधानी की सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गई थी. चूंकि एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी की ही सरकार थी, इसलिए पार्टी के पास कोई बहाना नहीं था. इससे जनता में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी.