जेपी जय प्रकाश को विभिन्न दलों से तीन बार लोकसभा सदस्य होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 80 के दशक में इनेलो के संस्थापक देवीलाल के साथ की थी। वह 1989 के लोकसभा चुनाव में जनता दल के टिकट पर, 1996 में हरियाणा विकास पार्टी के टिकट पर और 2004 में कांग्रेस के टिकट पर हिसार से जीते और सांसद बने। वे 1990 में तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर की सरकार में मंत्री थे। वह 2009 में आदमपुर विधानसभा, 2009 में हिसार लोकसभा और 2011 में हिसार उपचुनाव हार चुके है। और अब 2022 में आदमपुर उपचुनाव भी वह हार गए। लेकिन ग्रीन ब्रिगेड के राज में जेपी की तूती बोलती थी, आज सुनाएंगे उनसे जुड़ी सारी कहानी, बताएंगे उनका राजनैतिक कैरियर कैसे सरपट दौड़ता था।

दसवीं तक पढ़ें जयप्रकाश तीन बार हिसार से सांसद और एक बार 2000 में बरवाला से विधायक रह चुके हैं. 1990 में चंद्रशेखर सरकार में भी पेट्रोलियम और गैस के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे. मंत्री बनने की कहानी भी बड़ी रोचक है, जयप्रकाश 1988 में चौधरी देवीलाल की ग्रीन बिग्रेड के प्रमुख के रूप में भी चर्चा में आए थे और तब वे उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद सीट पर वीपी सिंह के चुनाव में मदद करने गए थे. जिसमें वीपी सिंह की जीत हुई थी. इसी के इनाम के रूप में उन्हें बाद में केंद्र में मंत्री बनाया गया था.जयप्रकाश ने 2009 का विधानसभा चुनाव आदमपुर सीट से लड़ा था. जहां वे कुलदीप बिश्नोई से लगभग 6000 वोटों से हारे. यह भजन लाल परिवार की आदमपुर सीट पर सबसे छोटी जीत थी. हिसार सीट से 2009 लोकसभा चुनाव और 2011 के चुनाव में जयप्रकाश की कांग्रेस की टिकट पर करारी हार भी हुई और 2011 में तो जमानत तक जब्त हो गई क्योंकि वहां मुकाबला मुख्य रूप से इनेलो और हजकां के बीच ही हो गया था।

कांग्रेस से नाराज हो निर्दलीय विधायक बने जेपी, 2014 में जयप्रकाश अपने गृह क्षेत्र कलायत से कांग्रेस की टिकट चाहते थे क्योंकि उन्हें अपने राजनीतिक जीवन को नई जान देनी थी. टिकट बंटवारे के आखिरी दिनों में जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार रणवीर मान को बनाने जा रही है. तो जयप्रकाश ने घोषणा से पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर चुनाव आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़ने के संकेत दे दिए थे.जानकार कहते हैं कि टिकट न मिलने से जयप्रकाश के लिए अच्छा रहा क्योंकि टिकट कटने से उन्हें लोगों की सहानुभूति मिली और कांग्रेस से नाराजगी का भी वोट सारा इनेलो या भाजपा को जाने की बजाय बंट गया. निर्दलीय लड़ते हुए जयप्रकाश दूसरी बार विधानसभा पहुंचे. लोगों से जुड़ने के लिए नामांकन के फॉर्म में उन्होंने अपना नाम भाई जयप्रकाश लिखा और वही यही नाम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में भी आया।

2019 में फिर से कांग्रेस में आए जयप्रकाश, 2019 में कलायत विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय विधायक जयप्रकाश उर्फ जेपी फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए. हरियाणा कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद, प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा और सीएलपी लीडर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मौजूदगी में जेपी ने कांग्रेस का हाथ थामा था….. हुड्डा के खासमखास रहे लेकिन सूरजेवाले से भी दूरी नहीं, बताया जा रहा है कि शुरू से ही हुड्डा और सुरजेवाला में प्रतिद्वंद्विता थी, जो हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद और बढ़ गई. जेपी हुड्डा खेमे में थे. चौधरी भजनलाल के निधन के बाद हिसार लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में बीरेंद्र सिंह अपने बेटे को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन हुड्डा ने जेपी को टिकट दिला दिया था. जेपी हार गए थे. बता दें कि साल 2018 में कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में कभी एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे जयप्रकाश ने करीब डेढ़ साल पुरानी दुश्मनी छोड़ कैथल के कार्यक्रम में रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ हाथ मिलाया था. सुरजेवाला और जेपी के बीच इस दोस्ती से जींद उपचुनाव में पहले उनके बेटे विकास को कांग्रेस की ओर से टिकट देने की चर्चाएं भी खूब उठी थीं, लेकिन बाद में कांग्रेस ने रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनाव में उतार दिया।

अतीत के आइने में देखे तो जेपी ने राजनीतिक गुरु देवीलाल को छोड़ बंसीलाल का हाथ थाम लिया लिया था, बने थे सांसद, हिसार लोकसभा सीट से 28 निर्दलियों समेत 35 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे। हरियाणा विकास पार्टी के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले जयप्रकाश (जेपी) ने एकतरफा जीत हासिल की। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद त्रिशंकु जनादेश आया। हरियाणा में चौधरी देवीलाल ने समता पार्टी के बैनर तले अपने प्रत्याशी उतारे। इस चुनाव में उनके शिष्य जयप्रकाश (जेपी) ने गुरु का हाथ छोड़ पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल का हाथ थामा और हिसार सीट से चुनाव जीत संसद पहुंच गए। हिसार से 174652 वोटों से जीते थे जयप्रकाश। हरियाणा विकास पार्टी के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले जयप्रकाश (जेपी) ने एकतरफा जीत हासिल की थी।

ग्रीन ब्रिगेड के सवाल पर भीड़ पड़े थे मुख्यमंत्री से, 2016 में विधानसभा सत्र के दौरान अभय चौटाला ने जब कलायत से निर्दलीय विधायक जयप्रकाश ‘जेपी’ की ओर इशारा करते हुए कहा, ग्रीन ब्रिगेड के मुखिया यही थे। इस पर जेपी ने सीएम की ओर इशारा करते हुए कहा कि उस समय आपकी पार्टी (भाजपा) भी हमारे साथ थीं। जवाब में सीएम बोले, थे ग्रीन ब्रिगेड बनने का हमें कष्ट है लेकिन हमारी पार्टी का एक भी इसमें शामिल नहीं रहा। 2022 में फिर से हार का स्वाद चखा जेपी ने, 2022 आदमपुर उपचुनाव में यूं तो जयप्रकाश की शुरुआत बड़ी जोर-शोर से हुई थी हुड्डा और उदय भान समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेता उनके साथ में खड़े थे। लेकिन भव्य बिश्नोई कुलदीप बिश्नोई ने भाजपा के रथ पर सवार होकर उन को पटखनी दे दी और बहुत प्रयासों के बावजूद जयप्रकाश फिर से हार गए लेकिन जयप्रकाश ने कुलदीप बिश्नोई को चैलेंज दिया है, 2024 में भी आदमपुर से लड़ूंगा चुनाव, कांग्रेसी नेता ने कहा है कि आदमपुर उप चुनाव में कांग्रेस ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए करीब 52000 वोट हासिल किए। लेकिन भव्य बिश्नोई कुलदीप बिश्नोई ने भाजपा के रथ पर सवार होकर उन को पटखनी दे दी और बहुत प्रयासों के बावजूद जयप्रकाश फिर से हार गए लेकिन जयप्रकाश ने कुलदीप बिश्नोई को चैलेंज दिया है, 2024 में भी आदमपुर से लड़ूंगा चुनाव, कांग्रेसी नेता ने कहा है कि आदमपुर उप चुनाव में कांग्रेस ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए करीब 52000 वोट हासिल किए।
2024 में भी आदमपुर से लड़ूंगा चुनाव, कांग्रेसी नेता ने कहा है कि आदमपुर उप चुनाव में कांग्रेस ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए करीब 52000 वोट हासिल किए।

बीजेपी को पता है कि जीत थोड़े से मार्जिन से हुई उसकी यह जीत भविष्य में बीजेपी की बड़ी हार का संदेश लिए हुए है। आदमपुर उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि आने वाला समय कांग्रेस का है और 2024 में कांग्रेस की सरकार बनेगी। जयप्रकाश जेपी ने आगे कहा कि बीजेपी ने उपचुनाव जीतने के लिए धनबल और सरकारी मशीनरी का जमकर दुरुपयोग किया। 2024 विधानसभा चुनाव में भी वह आदमपुर से ही लड़ेंगे और निश्चित तौर पर इस सीट से कुलदीप बिश्नोई को भारी अंतर से पटकनी देंगे। जयप्रकाश अपने सादे स्वभाव हरियाणवी बोली के लिए मशहूर है बिना लाग लपेट के अपनी बात कहते हैं और आम जनता से ग्रामीणों से सीधा जुड़ाव कर लेते हैं यही वजह है कि वह कलायत छोड़ हिसार में लगातार वोटरों की पहली पसंद बने रहे। लेकिन अब भविष्य उनका क्या होगा यह 2024 में गौर करने वाली बात होगी क्योंकि हुडडा खेमे में उनकी पकड़ कमजोर हुई है या मजबूत यह 2024 का टिकट बटवारा ही बताएगा। क्योंकि पहले भी कांग्रेस में उनके साथ विश्वासघात हो चुका है।