किरण चौधरी, हरियाणा के राजनीति की एक तेज तर्रार महिला नेता हैं। एक ऐसी महिला जिसने राजनीति अपने स्वर्गीय ससुर चौ बंसीलाल से सीखी। किरण चौधीरी जब पहली बार राजनीति में उतरी, तो पहली बार में एक ऐसा रिकॉर्ड बना डाला.. जिसने कि राजनीति के माहिर धुरंधरों को भी हैरत मे ंडाल दिया। हम किरण चौधरी की राजनीति और उनके जीवन के बारे मे जानेंगे। किरण चौधरी का जन्म 5 जून 1955 को दिल्ली कैंट में हुआ था, जो भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट के अनुभवी ब्रिगेडियर आत्मा सिंह और सरला देवी की बेटी हैं। वह एक वकील और राजनीतिज्ञ हैं, बहुत मजबूत राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं। वह स्वर्गीय सुरेंद्र सिंह लेघा की पत्नी हैं जो हरियाणा में सांसद, विधायक और कैबिनेट मंत्री थे। सुरेंद्र स्वर्गीय बंसी लाल लेघा के पुत्र हैं , जो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री हैं। किरण की बेटी श्रुति चौधरी भी भिवानी निर्वाचन क्षेत्र से सांसद थीं। किरण के दो भाई-बहन हैं अशोक चौधरी और अनुराधा चौधरी (सांसद)।

किरण चौधरी की क्या है खूबियां, किरण चौधरी एक ऐसी नेता हैं, जो कि रार हो या तकरार हो वो खुलकर जता देती हैं। कई ऐसे मौके आए, जब वे नेताओं को खुलकर चुनौती देती देखी गई। वो कुछ भी कहने में झिझकती नहीं हैं और अपने इरादों को खुलकर जता देती है। कुल मिलाकर कहें तो हरियाणा कांग्रेस की किरण चौधरी इकलौती ऐसी महिला नेता हैं, जो कि सशक्त नजर आती हैं और उनकी तेज तर्रारी के सामने दूसरे लोग फीके नजर आते हैं। जब किरण चौधरी ने बचाई थी परिवार की लाज, जी हां, हरियाणा की राजनीति में किरण चौधरी ऐसा कारनामा भी करके दिखा चुकी है, जब उन्होंने परिवार की राजनीतिक विरासत की लाज बचाई थी।

आज से ठीक 8 साल पहले, जब साल 2015 में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हुए थे। किरण चौधरी ने तोशाम से जीत दर्ज की थी। बड़ी बात तो ये रही कि चौधरी बंसीलाल के परिवार से केवल पुत्रवधू किरण चौधरी ही जीती थीं। बाढड़ा से बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर महेंद्रा, लोहारू से उनके दामाद सोमबीर सिंह, बेटी सुमित्रा, उनके गढ़ तोशाम से उनकी पुत्रवधु किरण चौधरी चुनाव लड़ रही थी। बाकी सभी तो चुनाव में हारे लेकिन किरण चौधरी ने तोशाम से जीत दर्ज की थी।

नेता प्रतिपक्ष भी रह चुकी हैं किरण चौधरी
जी हां, किरण चौधरी हरियाणा मे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभा चुकी है। साल 2104 में जब भाजपा की सरकार बनी थी, तब किरण चौधरी को कांग्रेस ने नेता विपक्ष चुना था। तब के हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी डॉ. शकील अहमद ने फैसले पर मोहर लगाई थी। किरण चौधरी अपनी परंपरागत विधानसभा सीट तोशाम से चुनाव जीत कर विधानसभा में दाखिल हुई थी। जिसके बाद से उनका सियासी कद जो बढ़ा था, वो अब तक बरकरार है। इसमें अपने आप मे ही रोचक बात है कि तब विधायक दल के नेता पद को लेकर कांग्रेस में अंदरुनी उठापटक चल रही थी। पार्टी का एक खेमा यह पद हुड्डा खेमे को दिए जाने के खिलाफ था। हुड्डा ने भी इस पद को लेने से इनकार करते हुए इसकी जानकारी पार्टी हाईकमान तक पहुंचा दी थी। लेकिन इन सबके बावजूद किरण चौधरी को नेता विपक्ष चुना गया था।

कैबिनेट मंत्री रही किरण चौधरी, किरण चौधरी का राजनीतिक सफर अपने आप में ऐतिहासिक रहा है। भले ही वे चौधरी बंसी लाल की पुत्रवधू हों लेकिन अपने ससुर की बनी बनाई लीक पर चलने की बजाय किरण चौधरी ने खुद की अपनी छवि बनाई है। साल 2014 में जहां वे नेता विपक्ष थीं, तो वहीं इससे पहले वे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुकी हैं। किरण चौधरी तब एक्साइज एंड टैक्सेशन मंत्री थीं। अपने राजनीतिक विरोधियों को दे रही टक्कर, किरण चौधरी इन दिनों अपने राजनीतिक विरोधियों को टक्कर देने के काम में जुटी हुई है। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि राजनीतिक विरोधी पार्टी के अंदर का है, या फिर बाहर का हैं।

उन्हें तो बस अपने राजनीतिक विरासत की सीट को विरोधियों से बचाना है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को किरण चौधरी चुनौती दे रही हैं। हुड्डा को जवाब देने के लिए किरण चौधरी नई मुहिम शुरू की हैं और वह पूर्व सीएम बंसीलाल के समर्थकों को अपने साथ जोड़ने निकल पड़ी है। हुड्डा के ‘विपक्ष आपके द्वार’ मुहिम के जवाब में ‘किरण कार्यकर्ताओं के द्वार’ कार्यक्रम के लिए जुटी रहीं। दरअसल किरण चौधरी अपने राजनीतिक विरोधियों से आरपार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। हुड्डा के ‘विपक्ष आपके द्वार’ मुहिम के जवाब में ‘किरण कार्यकर्ताओं के द्वार’ कार्यक्रम के लिए जुटी रहीं। दरअसल किरण चौधरी अपने राजनीतिक विरोधियों से आरपार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं।

किरण चौधरी ने अपने खास समर्थकों की बैठक में इस लड़ाई की शुरुआत करने का अहम निर्णय ले चुकी हैं। किरण चौधरी की यह लड़ाई उनके राजनीतिक विरोधियों को शिकस्त देने की रणनीति से जुड़ी हैं। साथ ही पार्टी में खुद का वर्चस्व बढ़ाने को लेकर भी लड़ाई है। 2004 में किरण चौधरी को मिली थी मात, बात साल 2004 की है, जब हरियाणा से राज्यसभा की 2 सीटों के लिए मतदान हुए थे। उस समय अजय चौटाला इनेलो की ओर से लड़े थे और कांग्रेस की तरफ से किरण चौधरी मैदान में थीं। निर्दलीय प्रत्याशी सरदार त्रिलोचन सिंह उस समय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन थे। उन्हें भाजपा और इनेलो के अलावा कुछ निर्दलीय विधायकों ने समर्थन देकर जिता दिया था। 2004 में किरण चौधरी नहीं जीत पाई थीं, उस समय वह दिल्ली की राजनीति में सक्रिय थीं। दमदार आवाज में गुंजती है किरण चौधरी की आवाज!, कांग्रेस नेता किरण चौधरी एक ऐसी महिला नेता हैं, जिनकी आवाज काफी दमदार है।

हरियाणा विधानसभा में उनकी आवाज काफी दमदार तरीके से गुंजती सुनाई देती है। पूरे फैक्ट और मुददों के साथ जब वे विधानसभा में बोलती हैं तो फिर वो देखने लायक होती हैं। वे हमेशा ये कहती सुनाई देती हैं कि हरियाणा में कई ज्वलंत मुद्दे हैं, जिन पर सदन में चर्चा होनी चाहिए। लेकिन भाजपा चर्चा से भागती रहती है। क्या भाजपा मे जाने वालीं थी किरण चौधरी?, हरियाणा की राजनीति में इस सवाल ने काफी गहमागहमी का माहौल पैदा कर दिया था कि क्या किरण चौधरी भाजपा में जाने वाली थीं। बीते साल इस सवाल ने जोर पकड़ा था। क्योंकि एक तो किरण चौधरी का विरोधाभासी रवैया तो वहीं दूसरी ओर किरण चौधरी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में सही से शामिल नहीं हुई थी।
उन्होंने अपने पति स्व. सुरेंद्र सिंह के साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का फोटो शेयर करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। इन दोनों राजनीतिक घटनाक्रम के बीच कयास लगाए जाने लगे थे कि किरण चौधरी भाजपा के संपर्क में हैं। उन्होंने अपने पति स्व. सुरेंद्र सिंह के साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का फोटो शेयर करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। इन दोनों राजनीतिक घटनाक्रम के बीच कयास लगाए जाने लगे थे कि किरण चौधरी भाजपा के संपर्क में हैं।

इन चर्चाओं को खारिज करते हुए किरण चौधरी ने कहा था कि उनके बारे में कांग्रेस छोड़ने का प्रचार करने वाले पार्टी में ही हैं। मैं कहीं नहीं जा रही हूं। कांग्रेस में हूं और कांग्रेस में ही रहूंगी। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम लिए बिना किरण चौधरी ने कहा था कि अगर कोई दूसरा नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा रहा हो तो मैं कुछ कह नहीं सकती।