हरियाणा का मुख्‍यमंत्री बनने की महत्‍वाकांक्षा रखने वाले पूर्व सांसद और हरियाणा के कद्दावर नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने राजनीति में 50 साल पूरे करने पर उचाना में एक रैली की थी, जिसमें सभी दलों के पूर्व सांसद, मंत्री और विधायक शामिल हुए! हरियाणा की राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुके बीरेंद्र सिंह का एक ही सपना है, जो कभी पूरा नहीं हो सका की वे हरियाणा के मुख्‍यमंत्री बने। कई बार चौधरी साहब मुख्‍यमंत्री की कुर्सी के करीब पहुंचते-पहुंचते चूक चुके है। इस वजह से उन्हें हरियाणा की राजनीति का ‘ट्रेजडी किंग’ भी बोला जाता है। इस समय बीरेंद्र सिंह एक तरह से राजनीतिक वनवास काट रहे हैं।

चौधरी बीरेंद्र सिंह हरियाणा के प्रसिद्ध किसान नेता चौधरी छोटू राम के नाती हैं। बिरेंद्र सिंह का जन्म 25 मार्च 1946 को हरियाणा के जींद जिले के डुमरखा कलां गाँव में हुआ था। विभाजन से पहले, उनके पिता चौ नेकी राम अविभाजित पंजाब के महत्वपूर्ण लोगों में से थे।शिक्षा दीक्षा की बात की तो बीरेंद्र सिंह ने रोहतक के गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा पूरी कि। वह अपनी पढ़ाई के दौरान एक खिलाड़ी भी रहे हैं। सिंह न केवल 1964 से 1967 तक क्रिकेट कप्तान रहे, बल्कि 1969 से 1970 तक पंजाब विश्वविद्यालय के लिए भी खेले। बीरेंद्र सिंह ने 9 जून 1970 को प्रेमलता सिंह से शादी की। प्रेमलता सिंह 2014 से 2019 तक उचाना कलां से हरियाणा विधानसभा की सदस्य रही हैं। उनके बेटे बृजेंद्र सिंह पहले एक आईएएस थे, जिन्होंने 1998 बैच के आईएएस अधिकारी के रूप में कार्य किया और 21 वर्षों तक हरियाणा में तैनात रहे। वह 2019 के भारतीय आम चुनाव में हिसार से भाजपा के सांसद चुने गए ।

शुरू में शिक्षाविद् के तौर पर बनाई जगह, उन्होंने हरियाणा में तकनीकी के साथ-साथ उच्च शिक्षा के लिए शिक्षण संस्थान बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। वह एक शिक्षाविद् रहे हैं और हरियाणा की बांगर एजुकेशन ट्रस्ट के संस्थापक हैं और साथ ही जींद और उचाना में बीरेंद्र सिंह कॉलेज ऑफ नर्सिंग भी मालिक हैं। 1974 से 1977 तक, वह हरियाणा हरिजन सेवक संघ के सदस्य थे। बीरेंद्र सिंह का राजनीतिक जीवन :-, सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में की थी। उन्हें एक सच्चे और निडर राजनेता के रूप में जाना जाता है। इसलिए उनके चाहने वाले उन्हें ‘बब्बर शेर’ कहते हैं। कुछ लोग जिन गुणों के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं, उनमें उनके वक्तृत्व कौशल (वह अपने दिल से बोलता है) शामिल हैं, जमीनी स्तर पर लोगों के साथ संपर्क में रहते हैं, और लोगों की समस्याओं को सुनने के लिए एक आदत है।

बीरेंद्र सिंह ने पहली बार 1972 में चुनाव लडा, जिसके बाद वे उचाना ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने। वह हमेशा जनता के बीच लोकप्रिय रहे हैं और जमीनी स्तर पर उनके लगातार संपर्क के कारण वह पांच बार उचाना विधानसभा सीट जीतने में सफल रहे हैं। विधायक के रूप में उनका पहला कार्यकाल 1977 से 1982 तक था, इसके बाद 1982, 1991, 1996, 2000 और 2005 तक विधायक रहे। इन पांच कार्यकालों के दौरान वे तीन बार हरियाणा के कैबिनेट मंत्री बने। उन्होंने 1977 में देश में मजबूत कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद बड़े अंतर से सीट जीती। इसने उन्हें रातोंरात भारत में एक स्टार राजनीतिक व्यक्ति बना दिया। विधायक के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, वह सरकार के अध्यक्ष थे। 1984 में, चौ ओम प्रकाश चौटाला को बड़े अंतर से हराने के बाद बीरेंद्र सिंह को हिसार निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। 42 साल कांग्रेस में रहने के बाद आए भाजपा में, 28 अगस्त 2014 में राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद, बीरेंद्र सिंह अगले दिन भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए शेष दो साल के कार्यकाल (2014-2016) के लिए उन्हें फिर से भाजपा सांसद के रूप में राज्यसभा के लिए चुना गया। नवंबर 2014 में चौ. बीरेंद्र सिंह ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली और उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय , पंचायती राज मंत्रालय और पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का प्रभार दिया गया ।

उन्हें 11 जून 2016 को छह साल की अवधि के लिए तीसरी बार राज्यसभा के लिए फिर से चुना गया । जुलाई 2016 में, नरेंद्र मोदी मंत्रालय के दूसरे कैबिनेट फेरबदल के दौरान , चौधरी बीरेंद्र सिंह को इस्पात मंत्री के रूप में चुना
गया। वीरेंद्र सिंह की संगठन में भी रही है महत्वपूर्ण भूमिका,1980 में, उन्हें हरियाणा युवा कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिस पद पर वे 2 साल तक रहे। 1985 में, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1987 में कांग्रेस कार्य समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य नियुक्त किया गया। 1990 में राजीव गांधी द्वारा हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और 1991 में हरियाणा के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला। 1998 से 2002 तक, उन्होंने कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति, इसके सर्वोच्च निर्णय लेने वाले कोर समूह में कार्य किया।
अपने ममेरे भाई भूपेंद्र हुड्डा से 36 का आंकड़ा, बीरेंद्र सिंह का आक्रामक रवैया कई लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता रहा है। उनके ममेरे भाई भूपेंद्र सिंह हुड्डा से उनकी कभी नहीं बनी हमेशा उनमें खींचतान बनी रही। सूत्र बताते है इसकी वजह बताई जाती रही के हुड्डा ने उनको कभी भी आगे बढ़ने नहीं दिया। राजनीति में अगर वीरेंद्र सिंह पिछड़े हैं तो वह हुड्डा की वजह से। वह यूपीए -2 सरकार में मंत्री बनने के लिए तैयार थे, लेकिन आखिरी मिनट में उनका नाम कट गया। जब कहा था 100 करोड में मिलती है राज्यसभा की सीट, 29 जुलाई 2013 को कांग्रेस पर चोट करते हुए वीरेंद्र सिंह ने खुलासा किया था कि 100 करोड़ में राज्यसभा की सीट बिकती है. बीरेंद्र सिंह ने अपनी ही पार्टी पर जमकर भड़ास निकाली थी और आरोप लगाए थे कि कुर्सी काबलियत से नहीं बल्कि दान से मिलती है।

सालों बाद फिर से मुख्‍यमंत्री बनने की महत्‍वाकांक्षा मार रही हिलोरे, सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की बात कह भाजपा से बेटे को टिकट दिलाने वाले बीरेंद्र सिंह एक बार फिर से खुद को सियासी तौर पर रिलांच करने की कोशिश में हैं। इसलिए अपनी ताकत दिखाने के लिए अपने 76वें जन्मदिन पर उन्‍होंने 25 मार्च 2022 उचाना में एक रैली की, जिसमें सभी दलों के नेताओं को बुलाया। इनेलो के अभय सिंह चौटाला सहित आप और अकाली दल के कई पूर्व सांसद और मंत्री मौजूद रहे। पूर्व मंत्री व भाजपा नेता प्रो. रामबिलास शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कार्यक्रम में मौजूद आप के राज्यसभा सांसद हरियाणा प्रभारी सुशील गुप्ता भी थे। उन्‍होंने लगे हाथ बीरेंद्र सिंह को आआपा में आने का न्‍यौता दिया। उन्‍होंने कहा कि ‘आम आदमी पार्टी में आपका स्‍वागत है।’ इस पर बीरेंद्र सिंह ने कहा कि मुझे स्‍वागत की धार कढनी है। आगे की बात करो। इस पर गुप्‍ता ने कहा कि पार्टी उन्‍हें सीएम चेहरा घोषित करेगी। हरियाणा की राजनीति की समझ रखने वालो का मानना है कि बीरेंद्र सिंह अपनी बात के पक्‍के नहीं है। उनकी करनी और कथनी में अंतर है। इस वजह से वह हरियाणा के बड़े नेता की सूची में शामिल तो हैं, लेकिन उनके सियासी बायोडाटा में कोई बड़ा काम नहीं है। उनकी पूरी राजनीति अपने इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। यहां तक कि कार्यकर्ताओं के लिए भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। वह राजनीति में मौका देख कर दांव खेलते हैं। कुछ समय पहले तक वह इनेलो के गुण गा रहे थे। अब जब से पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, वह उसके समर्थन में नजर आ रहे हैं। अब देखना होगा क्या इस जीवन में वह कभी मुख्यमंत्री बन पाएंगे या फिर यूं ही राजनीति के ट्रेजेडी किंग बने रहेंगे।