हरियाणा के पूर्व उप मुख्‍यमंत्री और पांच बार के विधायक रहे है चंद्रमोहन बिश्नोई। प्रदेश के बड़े राजनीतिक परिवार से ताल्‍लुक रखने वाले चंद्रमोहन खुद भी सियासत के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। इसी के चलते वह पांच बार विधायक चुने जाने के बाद हुड्डा सरकार में उपमुख्‍यमंत्री के पद तक पहुंच गए थे। पूर्व सीएम भजन लाल के बेटे, कद्दावर नेता कुलदीप बिश्नोई के बड़े भाई चंद्र मोहन ने कालका निर्वाचन क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया था, जिसमें उस समय पंचकुला शहर भी शामिल था, वे ऐसे राजनेता है जो 1993 से 2005 तक लगातार चार बार विधायक बने। लेकिन फिर वह वक्त भी आया जब वह राजनीतिक अज्ञातवास में चले गए थे और उन से डिप्टी सीएम पद भी छूट गया और वह राजनीतिक गुमनामी में भी चले गए थे। कैसे वो अनुराधा बाली उर्फ फिजा के प्यार में चांद मोहम्मद तक बन गए थे वो भी आज आपको बताएंगे।

चौधरी भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा की अगुवाई में बनी हरियाणा की कांग्रेस सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। चंद्रमोहन 1993 से 2005 तक कालका विधानसभा सीट से 4 बार विधायक रहे हैं। अनुराधा बाली के साथ धर्म परिवर्तन कर शादी करने के बाद चंद्रमोहन को उपमुख्यमंत्री का पद गंवाना पड़ा था। बता दें कि 2005 के विधानसभा चुनावों में हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने पर भजनलाल की जगह भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। हालांकि भजनलाल की नाराजगी को दूर करने के लिए उनके बेटे चंद्रमोहन को हुड्डा सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया।

2007 में जब भजनलाल ने छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ कांग्रेस का साथ छोड़कर हजकां का गठन किया तो चंद्रमोहन ने कांग्रेस में ही रहने का फैसला किया था। बाद में उन्होंने भी कांग्रेस छोड़कर हजकां का दामन थाम लिया था। साल 2016 में जब कांग्रेस का हजकां में विलय हुआ तब कुलदीप के साथ चंद्रमोहन भी कांग्रेस में वापस आ गए थे। वर्ष 2019 में उन्होंने पंचकूला विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए। और अब कुलदीप बिश्नोई के भाजपा में शामिल होने के बावजूद भी चंद्रमोहन कांग्रेस में टिके हुए हैं। चंद्रमोहन ने कुलदीप के भाजपा में जाने को लेकर न तो अपनी प्रतिक्रिया दी थी और न ही अपने पत्ते खोले थे। चंद्रमोहन कई बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके भजनलाल की सियासी विरासत के वारिस हैं। अभी तक दोनों भाई सियासत में साथ-साथ चलते रहे, लेकिन अब लगने लगा है कि दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं। चंद्रमोहन लंबे समय से कांग्रेस में हैं।

2009 व 2014 में उन्होंने कालका से चुनाव नहीं लड़ा। 2019 में कांग्रेस ने प्रदीप चौधरी को कालका से मैदान में उतारा तो उन्होंने पंचकूला से चुनाव लडऩा पड़ा, लेकिन वह हार गए। माना जा रहा है कि 2024 में भी कांग्रेस पार्टी उन्हे पंचकूला या कालका से मैदान में उतार सकती है। एक नाम फिजा बार-बार आपने सुना अब उसके बारे भी जान लीजिए, अपनी प्रेमिका अनुराधा बाली (फिजा) से धर्म बदलकर शादी करने के लिए सत्‍ता का सुख तक त्‍याग देने वाले चंद्रमोहन (चांद मोहम्‍मद) ने कई साल तक राजनीतिक बनवास भी झेला है। धर्म बदलकर फिजा से शादी करने की इस पूरी घटना के बाद जहां चंद्रमोहन के राजनीतिक करियर को खासा नुकसान पहुंचा, वहीं अनुराधा बाली की इमेज भी खराब हुई थी। इसके बाद उनके परिवार ने उनसे नाता तोड़ते हुए दूरियां बना ली थीं। लेकिन अपनी पूर्व पत्‍नी और बच्‍चों को नहीं भूल पाए थे चंद्रमोहन। तो उन्होंने वापस जाने की इच्‍छा जताते हुए 29 जनवरी 2009 को प्रेमिका से पत्‍नी बनी फिजा को तलाक दे दिया था.

फिजा को तलाक देकर फिर से वापस हिन्‍दू धर्म में लौटे चंद्रमोहन का बिश्‍नोई समाज ने शुद्धिकरण कराकर वापस बिरादरी में शामिल कर लिया था। फिजा को तलाक देने के बाद चंद्रमोहन ने फिर से राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी छोड़ पिता द्वारा बनाई गई हरियाणा जनहित कांग्रेस पार्टी में भाई कुलदीप बिश्नोई के साथ आ गए थे। चुनाव आते ही विरोधी खेमा फिर से उनके पुराने जख्मों को उधेड़ने में लग गया था। हालांकि अब वह इस सब को भुलाकर एक नई शुरुआत करने के इरादे से लौटे थे। यहां उनका व्यक्तिगत चैप्टर खत्म होता है और राजनीतिक चक्र शुरू होता है तो उस पर विस्तार से चर्चा कर लेते हैं, पंचकूला के राजनीतिक परिदृश्य से लगभग 10 साल की अनुपस्थिति के बाद वापसी कर रहे कांग्रेस उम्मीदवार चंदर मोहन बिश्नोई शहर में अपना पुराना राजनीतिक समर्थन वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस बार, 2009 में मुख्य रूप से शहरी विधानसभा क्षेत्र पंचकुला से पहली बार लड़ते हुए, चंद्र मोहन न केवल भाजपा के मौजूदा विधायक ज्ञान चंद गुप्ता को टक्कर दे रहे थे, बल्कि कांग्रेस के भीतर ही गंभीर गुटबाजी का भी सामना कर रहे थे।

2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। 2014 में, उनके भाई कुलदीप बिश्नोई ने उन्हें नलवा निर्वाचन क्षेत्र से टिकट दी थी।, लेकिन वह हार गए। “जनता चंद्र मोहन को उनके काम के लिए नहीं बल्कि चांद मुहम्मद विवाद के लिए याद करती हैं। लेकिन चंद्र मोहन के लिए यह सब अतीत की बात है। उन्होंने इसे विरोधियों की चाल बताया था और उस पर कडा हमला किया था उन्होंने कहा की “बीजेपी इन गंदी चालों को इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है। मेरा परिवार, कांग्रेस पार्टी और शहर के लोग सभी मुझे सपोर्ट करते हैं। मेरा काम खुद बोलता है। मैं भाजपा के निचले स्तर पर नहीं गिरना चाहता। उनके पास पिछले पांच सालों से दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है और इसलिए इस तरह के गैर-मुद्दों को उठा रहे हैं! इस तरह से उन्होंने विरोधियों पर अपनी भड़ास निकाली और उन्हें स्वस्थ राजनीति करने की नसीहत दे डाली थी।

अब बेटे सिद्धार्थ के लिए बना रहे राह, चंद्रमोहन के बेटे और युवा कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सिद्धार्थ बिश्नोई जनता के बीच सेवा में जुटे हुए हैं। सिद्धार्थ बिश्नोई युवा है और अपने दादा की विरासत को आगे ले जाना चाहते हैं। कालका विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक रहे चंद्रमोहन इस हलके से अब अपने बेटे को राजनीति में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। विधायक बनने के बाद भव्य बिश्नोई ने ताऊ का लिया था आशीर्वाद, आदमपुर उपचुनाव में जीत दर्ज करने के बाद भव्य बिश्नोई ने विधायक पद की शपथ लेकर अपने ताऊ चंद्रमोहन के चंडीगढ़ स्थित आवास पर पहुंचकर उनसे मुलाकात की थी। भजनलाल परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में आदमपुर से विधायक बनने पर भव्य ने अपने पिता के बड़े भाई से आशीर्वाद लिया। बता दें कि चंद्रमोहन इस समय कांग्रेस में हैं। आदमपुर में कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नाम होने के बावजूद भी चंद्रमोहन चुनाव प्रचार करने नहीं पहुंचे थे। आदमपुर में कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नाम होने के बावजूद भी चंद्रमोहन चुनाव प्रचार करने नहीं पहुंचे थे।

कांग्रेस ने आदमपुर ने भव्य बिश्नोई के खिलाफ चुनाव प्रचार करने के लिए जारी की गई लिस्ट में चंद्रमोहन का भी नाम शामिल किया था। पार्टी द्वारा जारी की गई 39 स्टार प्रचारकों की लिस्ट में भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन का नाम शामिल कर कांग्रेस ने भव्य के सामने उन्ही के ताऊ को चुनाव प्रचार में उतारने की कोशिश की थी। माना जा रहा था कि कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश के लिए चुनाव प्रचार करते समय चंद्रमोहन अपने सगे भतीजे भव्य की मुश्किलें बढ़ा सकते थे। हालांकि चंद्रमोहन ने पारिवारिक संबंधों को खराब होने से बचाने के लिए आदमपुर में चुनाव प्रचार से दूरी बनाकर रखी।