भारतीय राजनीति की एक खास बात यह है की हमेशा सबकुछ एक जैसा नहीं रहता। दिन लगातार बदलते रहते हैं। कभी लगता है कि अब सब कुछ इन्हीं के हाथ है तो अगले ही पल पता लगता है की इनके हाथ में तो अब कुछ भी नहीं रहा है। ऐसा ही कुछ हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के साथ हुआ था.. तंवर ने जेएनयू से लेकर सिरसा तक की जंग जीती , लेकिन पार्टी की गुटबाजी ने उन्हें घनचक्कर बना दिया था। तंवर हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष रहे है , सिरसा से संसद सदस्य यानी सांसद रहे है और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव भी रहे हैं । वह भारतीय युवा कांग्रेस और एनएसयूआई के पूर्व अध्यक्ष भी थे। उनके साथ एक रोचक तथ्य यह भी जुड़ा है की भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले सबसे कम उम्र के नेता थे । ऐसे ही और रोचक जानकारी अशोक तंवर के बारे में आज आपको देंगे ।

अशोक तंवर का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के चिमनी गांव में दिलबाग सिंह और कृष्णा राठी के एक किसान परिवार में हुआ था। अशोक तंवर की शुरुआती पढ़ाई दिल्ली में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए विषय इतिहास और जगह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय चुनी। जेएनयू से अशोक ने एमए, एमफिल और इतिहास में ही पीएचडी कर ली। अशोक तंवर ने जेएनयू में सिर्फ पढ़ाई नहीं की बल्कि कैंपस की हवा में घुली राजनीति को भी समझा और कांग्रेस का खेमा चुनकर सियासत शुरू कर दी। पहले वह एनएसयूआई से जुड़े, उनकी राजनीतिक समझ, छात्रों को इकट्ठा करने की काबिलियत काबिले तारीफ थी। इसीलिए वह जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर चुनाव भी लड़ गए। हालाकि उन्हें जीत हासिल नहीं हुई पर ये उनके लिए काफी फायदेमंद रहा।

तंवर 1999 में एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव बने और इसके 4 साल बाद उन्हें कांग्रेस के इस छात्र विंग का अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी शानदार ढंग से निभाते हुए जेएनयू में वामपंथी वर्चस्व को ध्वस्त करते हुए एनएसयूआई को लगातार दो बार जीत दिलाई। इस कारनामे के बाद एनएसयूआई का ग्राफ देश के कई और विश्व विद्यालयों में भी ऊपर उठा। उन्होंने पार्टी में अनुशासन बरतने पर विशेष जोर दिया। अशोक तंवर के लिए 2005 कई मायनों में खास रहा, इसी साल कांग्रेस में उनका प्रमोशन हुआ और उन्हें युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। इसी साल के जून में वह ललित माकन की बेटी अवंतिका माकन के साथ परिणय सूत्र में भी बंध गए। उनके तीन बच्चे हैं, दो बेटे और एक बेटी, अनिरुद्ध, आदिकर्ता और अभिस्तादा। देश के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा अवंतिका के सगे नाना हैं।

यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अशोक तंवर ने पार्टी को आगे ले जाने के लिए खूब मेहनत की। साल 2009 में कांग्रेस के आलाकमान ने उन्हें हरियाणा के सिरसा लोकसभा सीट से बतौर प्रत्याशी उतारा। कांग्रेस ने ये फैसला तब किया जब चुनाव में महज 1 महीने का वक्त था। तंवर ने चुनाव लड़ा और इंडियन नेशनल लोकदल के प्रत्याशी डॉ. सीताराम को 35,499 मतों के अंतर से हरा दिया। ये जीत इसलिए भी खास रही क्योंकि सिरसा प्रदेश के महत्वपूर्ण नेता ओम प्रकाश चौटाला का गृह जिला है और उन्हीं के गृह जिले में उनकी ही पार्टी को शिकस्त देना कोई छोटी बात नहीं थी।
2009 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी में उनका कद बढ़ गया। राहुल गांधी के करीबी होने के कारण हरियाणा की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। साल 2014 का हरियाणा विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया। पर उनकी काबिलियत पर मोदी लहर भारी पड़ी और भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में पहली बार अपनी सरकार बनाई।

2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार के बाद तो अशोक तंवर का विरोध नहीं हुआ पर इस साल लोकसभा चुनाव में प्रदेश की एक भी लोकसभा सीट न जीत पाने के कारण उनका खुला विरोध शुरू हो गया। प्रदेश कांग्रेस में दो गुट बन गए, एक गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के साथ चला गया तो दूसरा अशोक तंवर के साथ। कहा जाता है कि राहुल गांधी के खास होने के कारण वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर बने रहे। लेकिन जैसे ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी संभाली उन्होंने अशोक तंवर को जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया। कुमारी शैलजा को प्रदेश की कमान मिली। अब उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना था। प्रदेश में जब इनेलो के दर्जनभर विधायक पार्टी छोड़कर सत्ताधारी दल में शामिल हो रहे थे तब उन्होंने कांग्रेस के 17 विधायकों को भरोसा देकर पार्टी में रखा, उन्हें कांग्रेस का ही बनाए रखा।

वह वक्त भी आया जब कांग्रेस को अलविदा कहा, बता दे कि 2019 में हरियाणा में टिकट बंटवारे में कांग्रेस पार्टी के हुड्डा गुट के लोगों को ज्यादा टिकट दिए गए, जबकि अशोक तंवर गुट के बहुत कम लोगों को टिकट दिया गया। टिकट बंटवारे से नाराज होकर अशोक तंवर ने कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद बुरी तरह बिफरे अशोक तंवर ने अपने समर्थकों के साथ उसी रोज देर शाम सोनिया गांधी के आवास के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया था। फिर उनके तमाम शुभचिंतकों को लगा कि तंवर ने यह सब सही नहीं किया क्योंकि गांधी परिवार उन्हें इतने सालों तक अपना समर्थन देता रहा था। इससे पूर्व उन्हें अपने और हुड्डा समर्थकों के बीच झड़प में चोटें भी आर्इं थीं जब वे लोग वर्ष 2016 के दौरान किसान यात्रा खत्म करने के बाद दिल्ली लौट रहे राहुल गांधी का स्वागत करने वहां जमा थे। जिसमें खून से सने अशोक तंवर और उनके साथियों की फोटो अखबार की हेडलाइन बनी थी।

अंतत: तंवर ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 से ऐन पहले ही कांग्रेस छोड़ दी थी और उसका विस चुनाव में कांग्रेस की संभावनाओं पर किसी हद तक असर भी देखा गया क्योंकि विरोधियों ने इस वाकये को अनुसूचित जाति से आते उभरते युवा नेतृत्व के साथ कांग्रेस की नाइंसाफी माना था। जो भी हो, यह सब स्वयं तंवर के लिए भी घातक साबित हुआ क्योंकि पांच साल से भी अधिक समय तक प्रदेश की राजनीति में छाए रहने वाला युवा अचानक कहीं का नहीं रहा। लेकिन अशोक तंवर ने आस नहीं छोड़ी और प्रदेश विस चुनाव 2019 में दुष्यंत चौटाला की जजपा के कुछ प्रत्याशियों को समर्थन का ऐलान कर दिया जिससे उन्हें कुछ लाभ भी हुआ, विशेषकर जिला फतेहाबाद के हलका टोहाणा में जहां जजपा प्रत्याशी देविंदर सिंह बबली ने हरियाणा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला को पटखनी दे दी थी। बबली अब हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार में पंचायत मंत्री पद पर विराजमान हैं।

तब तंवर ने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को समर्थन का ऐलान किया हालांकि अशोक तंवर ने यह भी साफ किया था कि वे दुष्यंत चौटाला की पार्टी में शामिल नहीं हो रहे, सिर्फ उनको समर्थन दिया है। उन्नेहोंने कहा कि कांग्रेस का घमंड चूर-चूर होने जा रहा है। कांग्रेस में मेहनती कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई है। तवंर ने कहा कि सारी पार्टियों ने उन्हें फोन किया। भाजपा के लोग भी आए लेकिन हमने निर्णय लिया था कि हम धक्के से किसी का समर्थन नहीं करेंगे। यदि किसी को समर्थन मांगना है तो खुले में मांगों हम जरुर देंगे। दुष्यंत ने समर्थन मांगा तो उन्हें समर्थन दे रहे हैं। फिर किया अभय का समर्थन, ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 में तंवर ने इनेलो के अभय सिंह चौटाला को समर्थन दे दिया था लेकिन उनके समर्थक चाहते थे कि वे किसी मुख्यधारा वाली पार्टी का दामन थामें। फिर नवंबर, 2021 में उन्होंने ममता बनर्जी नीत तृणमूल का दामन थाम लिया। तब उनके समर्थकों को लगता था कि उन्हें तृणमूल की टिकट पर राज्यसभा में भेजा जा सकता है।

वहीं अशोक तंवर ने कहा,था “ममता जी का शुक्रिया अदा करता हूँ. उन्होंने हमें अप्रोच किया इसके लिए धन्यवाद. पूरा देश बीजेपी की तानाशाही से दुखी है. मैंने सार्वजनिक जीवन में लंबा वक्त गुज़ारा है. देश में इस समय एक मात्र नेतृत्व ममता बनर्जी हैं. टीएमसी पूरे देश को नया विजन दे रही है.”। फिर कैसे जुड़े आप से, 2022 में पंजाब में ‘आप’ की जबर्दस्त जीत ने अरविंद केजरीवाल नीत पार्टी के मन में पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी नेताओं को नई आशा की किरण दिखाई। उसी को देखते हुए अशोक तंवर ने आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ने का फैसला किया
। यह फैसला उनकी प्रदेश की राजनीति में नए रास्ते खोलने का सबब साबित हो सकता है। यह भी हो सकता है कि इससे उनके राजनीतिक सफर की दशा ही तय हो जाए। लेकिन अभी तक आम आदमी पार्टी में आने के बाद कोई बड़ी जिम्मेदारी अशोक तंवर को ना मिलना भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

अब देखना होगा कि क्या आम आदमी पार्टी कोई बड़ी जिम्मेदारी अशोक तंवर के कंधों पर देती है या नहीं। आपको बता दे की यहां भी उनकी राह में कुछ बड़े नाम रोड़ा अटका सकते हैं। हाल फिलहाल में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर भी उनके नाम की सुगबुगाहट सुनने को मिली थी। जब अशोक तंवर ने बताया था अपनी जान को खतरा, 2022 में आम आदमी पार्टी के नेता अशोक तंवर ने अपनी जान को खतरा बता कर हाई कोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाई थी। तंवर ने 31 दिसंबर 2021 के उस आदेश को भी रद करने की गुहार लगाई है जिसके तहत उन्हें मिली सुरक्षा को वापस ले लिया गया था। कोर्ट को बताया गया कि वर्ष 2009 से 2014 के दौरान याचिकाकर्ता को दिए गए सुरक्षा कवर में 8 से 10 सुरक्षाकर्मी और एक पायलट जिप्सी शामिल थे, जिसे 2015 में संख्या कम कर उसे केवल दो सुरक्षा गार्ड दिए गए। याचिका के अनुसार दिसंबर 2016 में दिल्ली में उस पर जानलेवा हमला हुआ था। तो यह थी अशोक तवर की अभी तक की सियासी सरगर्मियां अशोक तंवर के बारे आप कितना जानते थे और कितना उनको पहचानते थे हमें जरूर बताइएगा।