नो इफ, नो बट.. फैसला ऑन दि स्पॉट… हरियाणा की राजनीति का एक ऐसा नेता, जो आजकल ‘गब्बर’ के नाम से जाना जाता है। ऐसा नेता , जो आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। अगर हम कहें कि हरियाणा का बच्चा बच्चा इस नेता का फैन है, तो ये कहना गलत ना होगा। गब्बर नाम से ही पहचान गए होगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हां मौजूदा समय में हरियाणा के गृह एंव स्वास्थय मंत्री अनिल विज की। वही अनिल विज जो हरियाणा कैबिनेट में सबसे ज्यादा काम करने के लिए जाने जाते हैं। हरियाणा के इकलौते ऐसे कैबिनेट मंत्री हैं, जिनका काम अकसर सुख्रियों में बना रहता है। फिर चाहे एक ही पल मे आरोपी पुलिस कर्मियों को सस्पेंड करना हो या फिर किसी विपक्ष के नेता पर कटाक्ष करना हो, अनिल विज हर काम के माहिर नेता हैं। जिस नेता का इतन बखान हुआ, तो फिर उनकी जिंदगी और राजनीति सफर के बारे में भी जान ही लेते हैं।

अनिल विज स्पष्टवादी हैं और बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात को आसानी से कहने का हुनर जानते हैं। हरियाणा की अपनी ही भाजपा सरकार की खिलाफत भी वे कर चुके हैं। जब उन्होंने आइपीएस अधिकारी अशोक खेमका का खुलेआम समर्थन किया था। बता दें कि खेमका वही अधिकारी है जिनका बार बार टरांसफर किया जा चुका है। अनिल विज का जनता दरबार, अंबाला में हर शनिवार को अनिल विज का जनता दरबार लगता है। जिसमें कि वे सुबह 9 बजे से शाम तक लोगों की समस्याओं को सुनते हैं। तो वहीं इस दरबार में लोगो की भारी भीड़ देखते ही बनती है। कहने को तो हरियाणा के कैबिनेट में और भी दूसरे कई मंत्री हैं। लेकिन लोगों को तो सिर्फ अनिल विज से ही आस लगी होती हैं। अंबाला में जनता दूर दराज के क्षेत्रों से आती है। महेंद्रगढ़ जेसे दूर दराज के इलाकों से लोग बस और गाड़ी का सफर करके अंबाला पहुंचते हैं और अनिल विज के सामने समस्याओं को रखते हैं। इस जनता दरबार के लिए लोग घंटों लाइन में लगने को भी तैयार रहते हैं। और विज भी रात के 2:02 बजे तक उन लोगों की समस्याएं सुनते हैं और फैसला ऑन द स्पॉट करते हैं।

बयानबाजी में सबसे तेज अनिल विज, वे जितने कुशल राजनीतिज्ञ हैं, उतने ही प्रखर वक्ता भी हैं। राजनीति विरोधियों पर तीखी टिप्पणी के कारण हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं। हरियाणा में अगर कांग्रेस पर टिप्पणी करने वाले नेताओं की लिस्ट बनेगी तो फिर सबसे उपर नाम अनिल विज का ही होगा। यह अपने आप में ही रोचक है कि न्यूज मीडिया भी अनिल विज के दिए बयानों को प्रमुखता देती है, क्योंकि वे कुछ भी टिप्पणी करने से गुरेज नहीं करते हैं। अनिल विज का राजनीतिक सफर, मंत्री अनिल विज का राजनीतिक सफर शुरू होता है आज से ठीक 33 साल पहले। 27 मई 1990 को तत्कालीन सातवीं हरियाणा विधानसभा की दो रिक्त सीटों के लिए उपचुनाव हुआ। एक तो सिरसा सीट पर जहां से पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला निर्वाचित हुए, तो वहीं दूसरी सीट थी अम्बाला जिले के कैंट विधानसभा क्षेत्र की। जहां से भाजपा के अनिल कुमार यानि के अनिल विज निर्वाचित हुए थे। जो प्रदेश की मौजूदा भाजपा- जजपा गठबंधन सरकार में गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री तो हैं ही, साथ ही उनके पास 5 अन्य विभाग भी हैं।

अनिल विज की साफ सुथरी छवि ने बनाया लोकप्रिय, गृह मंत्री अनिल विज की साफ सुथरी छवि का होना ही लोगों के लिए बड़ी बात है। किसी भी तरह के फसाद से अनिल विज दूर हैं। अनिल विज के चाहने वाले और उनके समर्थक कई अलग अलग नामो से अनिल विज को पुकारते हैं। जैसे कि बाबा जी, गब्बर, सफेद दाड़ी वाला बाबा जैसे कई नाम हें जो आपको सुनने को मिल जाएंगे। गब्बर नाम तो इसलिए पड़ा क्योंकि वे नकारा अधिकारियों को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करते हैं। काम में कोताही पाए जाने पर वे मौके पर गाज गिराने से गुरेज नहीं करते है। यहीं कारण हैं कि इसी स्वभाव के चलते अनिल विज गब्बर के नाम से भी जाने जाते हैं। 1990 में पहली बार बने थे विधायक, हरियाणा के कैबिनेट मंत्री अनिल विज पहली बार 1990 में विधायक बने थे। अम्बाला कैंट से उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा और यहीं से जीते भी। बता दें कि इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार देव राज आनंद का कब्जा था। यहां एक बात और बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज उस समय में भाजपा गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थीं और 1990 में हरियाणा से राज्य सभा के लिए निर्वाचित होने के बाद उन्होंने इस सीट के विधायक पद से त्यागपत्र दे दिया था। जिसके फलस्वरूप हुए उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर अनिल विज ने चुनाव लड़ा और विजयी हुए। हालांकि इसके मात्र एक वर्ष के भीतर ही अप्रैल 1991 में सातवीं हरियाणा विधानसभा समयपूर्व ही भंग हो गई और साल 1991 विधानसभा आम चुनावों में कांग्रेस के बृज आनंद ने अनिल विज को हरा दिया था।

जब अनिल विज ने छोड़ दी थी भाजपा, जी हां ये अपने आप में ही हैरानी की बात है कि हमेशा भाजपा कर पैरवी करने वाले अनिल विज एक बार भाजपा का दामन भी छोड़ चुके हैं। बात 1990 के बाद की है। साल 1995 के आसपास विज ने भाजपा छोड़ दी थी और साल 1996 और 2000 में लगातार दो बार हरियाणा विधानसभा चुनावों में निर्दलयी के तौर पर चुनाव लड़ा। अनिल विज लगातार दो बार विधायक बने। हालांकि साल 2005 के विधानसभा चुनावो में कांग्रेसी प्रत्याशी एडवोकेट देवेंदर बंसल ने विज को मात्र 615 वोटो से हरा दिया था। इसके बाद वर्ष 2007 में अनिल विज ने विकास परिषद के नाम से अपनी अलग राजनीति पार्टी बनाई। हालांकि 2009 विधानसभा चुनावों से ठीक पहले वो फिर से भाजपा में शामिल हो गए थे। बनाया सर्वाधिक वोटों का रिकॉर्ड, अनिल विज की प्रसिद्धी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वे तो चुनावों में सर्वाधिक वोट बटोरने का रिकॉर्ड तक बना चुके हैं। अक्टूबर 2019 के चुनावो में अम्बाला कैंट में कुल मतदाता 1 लाख 21 हज़ार थे। विज को सर्वाधिक 64 हज़ार 571 वोट अर्थात 53 प्रतिशत वोट मिले थे।

जो की आज तक मिले उनको सर्वाधिक वोटों से ज्यादा है। उन्होंने अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी निर्दलयी चित्रा सरवारा को 20, 165 वोटों से हरा दिया था। बड़ी बात तो ये है कि विज ने इससे पहले इसी अंबाला कैंट सीट से निर्मल सिंह को भी लगातार दो बार हरा चुके हैं। साल 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावो में निर्मल सिंह को हरा चुके हैं। 6 बार के चुनावों में 5 बार जीत की हासिल, अनिल विज ने अपने राजनीतिक जीवन में 6 बार चुनाव लड़ा है और वे 5 बार जीते हैं। मात्र 2005 के चुनाव में वे हारे थे। सबसे पहला चुनाव 1990 में लड़ा और जीता। साल 1996 और 2000 का चुनाव आजाद उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और जीता। फिर 2009, 2014 और 2019 का चुनाव भाजपा की टिकट पर लड़ा और वो भी जीत कर दिखाया।

राजनीति में अनिल विज की हैट्रिक , हरियाणा के गब्बर अनिल विज राजनीति में हैट्रिक भी बना चुके हैं। लगातार तीन बार चुनाव लड़ा और तीनों ही चुनाव एक लाइन में जीत कर भी दिखाए। साल 2009, 2014 और 2019 का चुनाव अनिल विज ने भाजपा की ओर से लड़ा और हैट्रिक कायम करते हुए जीत का विधानसभा पहुंचे।…..तो ये थी अनिल विज के राजनीतिक सफर की कुछ जानकारी, नेता के तौर पर अनिल विज जितना खुद बोलते हैं उतना ही उनका काम भी बोलता है। वे बीते 9 सालों से कैबिनेट मंत्री हैं और बाखूबी इस जिम्मेदारी को निभा भी रहे हैं।