रणदीप सिंह सुरजेवाला हरियाणा के एक कांग्रेसी नेता हैं। वह पूर्व कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री शमशेर सिंह सुरजेवाला के बेटे हैं। सुरजेवाला सबसे लंबे समय तक कांग्रेस प्रवक्ता बने रहे. 2014 के आम चुनावों के दौरान जनवरी 2014 में उन्हें प्रवक्ता बनाया गया था, जबकि वे हरियाणा में कैबिनेट मंत्री थे. बाद में उन्हें मार्च 2015 में पार्टी का मुख्य प्रवक्ता बनाया गया. जून 2022 में राज्यसभा में उनको भेजा गया उसके बाद उन्हें इस पद से मुक्त किया गया। दिलचस्प बात यह है कि सुरजेवाला अस्थायी आधार पर नियुक्ति के बाद सात साल से अधिक समय तक कम्युनिकेशन विभाग के प्रभारी के पद पर बने रहे। रणदीप सुरजेवाला ने मैट्रिक तक की पढ़ाई हरियाणा के जींद से पूरी की. इसके बाद की पढ़ाई के लिए वो चंडीगढ़ चले गए. उन्होंने पहले बीकॉम किया और फिर लॉ की डिग्री ली। पंजाब विश्वविद्यालय में कॉलेज में भाग लेने के दौरान राजनीति के साथ अपना पहला अनुभव किया। बाद में, वे कॉर्पोरेट वकील बनने गए। रणदीप ने हरियाणा विधानसभा के लिए पांच चुनाव यानी 1993-उपचुनाव, 1996, 2000, 2005, 2009 और 2014 में चुनाव लड़ा। पहले चार चुनावों में उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के खिलाफ उतारा गया था। उन्होंने 1996 में और फिर 2005 में चौटाला को हराया। उन्होंने हरियाणा सरकार में जल आपूर्ति और स्वच्छता, संसदीय मामलों, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे कई कैबिनेट विभागों को अलग-अलग समय पर संभाला है।

सुरजेवाला को अक्सर कांग्रेस प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी के साथ देखा जाता रहा। बोलने की अपनी साफ़-सुथरी शैली और तर्कों के दम पर वह अपनी बात रखते हैं. सुरजेवाला जींद विधानसभा उपचुनाव में अपनी हार को लेकर चर्चा में रहे. बताया गया कि वह अंदरूनी राजनीति का शिकार हो गए थे जिसको लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का रामविलास शर्मा का कांटा निकालने वाला एक वीडियो भी वायरल हुआ था। कैथल से विधायक होने के बावजूद वो उपचुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे थे. लेकिन बीजेपी ने ये सीट जीत ली और सुरजेवाला की राजनीति के लिए के लिए ये बड़ा झटका माना गया है. हरियाणा की राजनीति में उनके क़द का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने उन्हें 1996 और 2005 के चुनावों में इंडियन नेशनल लोकदल के नेता और मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला के ख़िलाफ़ मैदान में उतारा था और दोनों बार सुरजेवाला ने उन्हें शिकस्त दी थी। साल 2014 के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस का प्रदर्शन काफी ख़राब चल रहा था लेकिन रणदीप सिंह सुरजेवाला इस दौरान भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे.जाट समुदाय से आने वाले सुरजेवाला कांग्रेस का युवा चेहरा हैं और राहुल गांधी के विश्वासपात्र के तौर पर समझे जाते हैं. सुरजेवाला न सिर्फ़ जाट होने के चलते बल्कि उनके तार्किक बयान और पार्टी का पक्ष मज़बूती से रखने की वजह से स्थानीय राजनीति में होते हुए भी राष्ट्रीय राजनीति में दखल रखते हैं.”, “सुरजेवाला सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे नेताओं में से एक हैं और उनके पिता की एक राजनीतिक विरासत भी रही है.” “वो कम उम्र में राजनीति में आए और विधायक बने. वो बहुत कम उम्र में यूनिवर्सिटी के सीनेट के सदस्य भी रहे थे.”
महज 17 साल की उम्र में सुरजेवाला को हरियाणा प्रदेश के कांग्रेस यूथ विंग का जनरल सेकेट्री नियुक्त किया गया था।

छह साल बाद 2000 में वो पहले ऐसे हरियाणा से आने वाले ऐसे शख्स बने, जिसे इंडियन यूथ कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. इस पद पर वो पांच साल रहे और इतने लंबे वक़्त तक रहने वाले भी वो पहले अध्यक्ष बने. साल 2004 में उन्हें कांग्रेस पार्टी में सचिव का पद दिया गया और साल के अंत में उन्हें प्रदेश इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.सुरजेवाला कई बार राज्य मंत्री और कैबिनेट के सदस्य रह चुके हैं। पिता के भाग्य का सितारा रणदीप, तीन जून, 1967 को चंडीगढ़ में जन्मे रणदीप सिंह सुरजेवाला अपने मां-बाप की चौथी संतान हैं. जिस वक़्त उनका जन्म हुआ था, हरियाणा में पहली सरकार बनी थी और उनके पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला को उस सरकार में कृषि मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.उनके पिता पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं.पिता ख़ुद यह बात मानते हैं कि रणदीप के आने से उनकी क़िस्मत चमक उठी. शमशेर सिंह सुरजेवाला ने अपनी आत्मकथा ‘मेरा सफर, मेरी दास्तां’ में लिखा है “रणदीप का जन्म चंडीगढ़ पीजीआई में हुआ था. जब उसका जन्म हुआ, मैं सरकार में मंत्री था. ये महज इत्तेफाक की बात है या फिर क़िस्मत का कनेक्शन है कि जब-जब रणदीप के जीवन में कोई महत्वपूर्ण मोड़ या ख़ास साल होता तो उस दौरान मैं मंत्री होता था.”

यूथ कांग्रेस में रहते हुए साबित की नेतृत्व क्षमता, 1995 में उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में एमए की पढ़ाई पूरी की. रणदीप की शादी साल 1991 में गायत्री से हुई और उनके दो बच्चे, अर्जुन और आदित्य हैं. प्रदेश यूथ कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने न सिर्फ़ राज्य के भीतर बल्कि राज्य के बाहर भी अपना नाम स्थापित करने में सफलता पाई. “एक वक़्त था जब सुरजेवाला ने राजस्थान के सूखा प्रभावित इलाक़ों के गौशालाओं के लिए चारे के 121 ट्रक भेज कर युवा कांग्रेस की शक्ति का प्रदर्शन किया “इतना ही नहीं 50 लाख लीटर पानी भी उन्होंने सूखे से प्रभावित इलाक़ों को उपलब्ध कराया था. उन्होंने यह दिखाया किया कि युवा शक्ति सामाजिक कार्यों को किस तरह कर सकती है। जब राजीव गांधी ने बचाई थी रणदीप की जान, शमशेर सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “वैसे भी रणदीप को एक बार जीवनदान परमात्मा ने ही दिया, जब राजीव गांधी ने मेरी देवदूत की तरह मदद की थी. 1984 में रणदीप को हैपेटाइटिस बी हो गया. उन दिनों हैपेटाइटिस बी लगभग लाइलाज बीमारी थी. “रणदीप की हालत इतनी ख़राब हो गई थी कि वो बेहोश हो गया. स्थिति लगभग कोमा जैसी हो गई थी, तब पीजीआई के डॉक्टरों ने एक इंजेक्शन लिखा, जो उस वक़्त इंग्लैंड में ही मिलता था.” तब राजीव जी ने आनन-फानन में अपने किसी पायलट मित्र से फोन पर बात की और इंग्लैंड से इंजेक्शन मंगवाया. वह इंजेक्शन रणदीप के लिए संजीवनी बूटी की तरह काम किया.”

रणदीप के पिता ने उस पल का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि यह उनकी मां की मौत के बाद उनके जीवन का सबसे भयानक पल था। राजनीतिक सफ़र में संघर्ष कम नहीं रहे, सुरजेवाला का राजनीतिक सफ़र सफलताओं और संघर्षों से भरा रहा है. उन्हें पार्टी के बाहर और भीतर, दोनों जगहों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. “जब आप कम उम्र में अपनी काबिलियत से आगे बढ़ने लगते हैं तो आप अपने ही लोगों की नज़र में आ जाते हैं. सुरजेवाला ने उन सभी चीज़ों से लड़ा है और आगे बढ़े हैं. शुरू से उन्हें जो भी ज़िम्मेदारी मिली, उसे सफल तरीक़े से निभाया.” ऐसा भी नहीं है कि वो ख़ास वक़्त के लिए चर्चा में रहे हों. वो लगातार एक समान पार्टी में अपनी अहमियत साबित करते रहे हैं. वो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के सचिव और कम्यूनिकेशन सेल के प्रभारी रहे हैं और ये दर्शाता है कि उन्होंने पार्टी की अंदरूनी राजनीति से कैसे पार पाया है। पार्टी के मुश्किल वक़्त में साथ खड़े रहने वाले सुरजेवाला, साल 2014 में केंद्र में भाजपा जब बड़े जनाधार के साथ सत्ता में आई, कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता बयानबाज़ी से बचने लगे थे. पार्टी के कार्यकर्ता और नेता हताशा के दौर से गुज़र रहे थे. उस मुश्किल वक़्त में रणदीप सिंह सुरजेवाला मज़बूती के साथ पार्टी का पक्ष देश के सामने रखते थे. यही कारण है कि साल 2014 में कांग्रेस के प्रवक्ता बने सुरजेवाला को एक साल बाद पार्टी के कम्यूनिकेशन विंग का प्रभारी बना दिया गया. वो शुरुआत से ही कांग्रेस से जुड़े रहे हैं. समय के साथ उन्होंने पार्टी में तेज़ी से अपनी जगह बनाई है. वे मुखर वक्ता और स्वस्थ प्रतिद्वंदी बने रहे। यही खासियत रणदीप सुरजेवाला को और राजनेताओं से अलग बनाती है।