सादा जीवन, उच्च विचार…. इस कथन को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बाद अगर किसी ने सच कर दिखाया है, तो वो हैं अपने हरियाणा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा। उन्हें देखकर आपको अपनेपन जैसा महसूस होगा। वे एक ऐसा नेता हैं, जो कि किसी भी तरह के विवाद से खुद को बचाकर रखने की कोशिश करते हैं और किसी भी तरह की रसूख व अघड़पन उनके स्वभाव में नजर नहीं आता है। तो क्यों ना आज हम अपने हरियाणा के ऐसे ही शांत और सरल नेता के बारे जानें। तो फिर चलिए जानते हैं डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की जिंदगी से जुड़े ऐसे ही रोचक पहचलुओं के बारे में।

रणबीर गंगवा जिनका जन्म 3 अप्रैल सन 1964 में हरियाणा के हिसार जिले में हुआ था। वर्तमान समय में वे 58 वर्ष के हैं। भारतीय जनता पार्टी के वे नेता हैं और साल 2019 से वे हरियाणा विधानसभा में डिप्टी स्पीकर की कुर्सी को। सोभायमान कर रहे है। यानि बीते 4 सालों से वे इस पद को बाखूबी संभाले हुए हैं। साधारण रहन- सहन है पसंद, रणबीर गंगवा के पिता स्व. राजाराम पेशे से किसान थे। लिहाजा गंगवा का पालन पोषण शुरु से ही वे साधारण परिवार में हुआ। परिवार के दिए संस्कार का ही असर है कि रणबीर गंगवा को साधारण रहना और साधारण खान- पान पसंद हैं। उनके घर में उनकी पत्नी केसर देवी, उनके दो बेटे संजीव और सुरेंद्र हैं। दोनों बेटों को शादी भी हो चुकी हैं।

पिता की प्रेरणा से राजनीति में आए गंगवा
एक बच्चे के लिए पिता ही उसका सरमाया होता है और उसके लिए पथ प्रदर्शक भी होता है। रणबीर गंगवा के पिता स्व. राजाराम ने भी रणबीर गंगवा को राजनीति का मार्ग दिखाया था। पिता ने जो रास्ता गंगवा को दिखाया था, उस पर बाखूबी चल कर दिखाया और फिर कभी पीछे पलट कर नहीं देखा। पंचायत चुनाव से बढ़ा था राजनीतिक कद
,सियासी कद बढ़ाने में पंचायती चुनाव अहम भूमिका निभाता है। पूर्व सीएम भजनलाल समेत कई दिग्गज इसी चुनाव से शिखर तक पहुंचे। हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा भी वैसे ही नेताओं में शुमार हैं और नवोदित नेताओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने गांव गंगवा में पंच का चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक कॅरिअर की नींव रखी थी। हिसार में वर्ष 1990 में महज 26 साल की उम्र में रणबीर गंगवा ने अपने परिवारजनों के कहने पर गंगवा गांव में पंच का चुनाव लड़ा था। पंचायत चुनाव की जीत से मिले हौसले के बाद रणबीर गंगवा ने जिला परिषद से लेकर विधानसभा का चुनाव लड़ा व डिप्टी स्पीकर के पद तक पहुंचे।

33 साल पहले राजनीति में आए थे गंगवा,
रणबीर गंगवा आज से ठीक 33 साल पहले रानजीति में आए थे। बता दें कि साल 1990 में उन्होने राजनीति में कदम रखा था और आज वे डिप्टी स्पीकर के पद पर विराजमान है। 33 साल के इस सफर में कई कठिनाइयां आई, राजनीति के मैदान मे कई बार ढलान जैसे रास्ते भी आए लेकिन उन्होने हार नहीं मानी ओर लगातार आगे बढ़ते रहे।…पहली बार इनेलो की टिकट पर लड़ा था चुनाव, रणवीर गंगवा ने साल 2000 में इनेलो का हाथ थाम था। इनेलो में शामिल होने के बाद पहला चुनाव जिला परिषद का लड़ा और जीत कर भी दिखाया। फिर इसके बाद गंगवा ने एक बार फिर से जिला परिषद का चुनाव लड़ा और इस बार वे वाइस चेयरमैन बने थे। सतबीर वर्मा को मानते हैं गुरू, 58 वर्षीय रणबीर गंगवा सतबीर वर्मा को अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं। बता दें कि सतबीर वर्मा इनेलो के नेता थे और पिछड़ा आयोग का चेयरमैन भी वे रह चुके हैं। लिहाजा इनेलो में रहकर ही राजनीति के दांव पेंच भी गंगवा ने सतबीर वर्मा से ही सीखे थे।

पहली बार नलवा से लड़ा था विधानभा चुनाव,
साल 2009 में नलवा को विधानसभा क्षेत्र बनाया गया था और यहीं से रणबीर गंगवा ने इनेलो की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। लेकिन अफसोस कि वे यहां से जीत दर्ज नहीं कर से थे। हार के बावजूद भी रणबीर गंगवा रूके नहीं, बल्कि वे लगातार प्रयास करते रहे और इसी का नतीजा रहा कि इनेलो ने गंगवा को राज्यसभा भेजा था। यानि के रणवीर गंगवा अपने जीवन में राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं। हार कर भी बटोरे भी ज्यादा वोट, रणबीर गंगवा बेशक अपना पहला चुनाव हार गए थे लेकिन चुनौती भी तो उन्होंने किसी छोटे नेता को नहीं दी थी। बल्कि स्व. भजनलाल की पत्नी जसमा देवी को दी थी। अथक प्रयास के बावजूद गंगवा बेशक चुनाव हार गए थे लेकिन लोगों के बीच अपनी पैठ भी बनाई थी। इसी का नतीजा था कि रणबीर गंगवा को इन चुनावों के दौरान 22 हजार 500 से भी ज्यादा वोट मिले थे।

पहली बार नलवा से लड़ा था विधानभा चुनाव,

साल 2009 में नलवा को विधानसभा क्षेत्र बनाया गया था और यहीं से रणबीर गंगवा ने इनेलो की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। लेकिन अफसोस कि वे यहां से जीत दर्ज नहीं कर से थे। हार के बावजूद भी रणबीर गंगवा रूके नहीं, बल्कि वे लगातार प्रयास करते रहे और इसी का नतीजा रहा कि इनेलो ने गंगवा को राज्यसभा भेजा था। यानि के रणवीर गंगवा अपने जीवन में राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं। हार कर भी बटोरे भी ज्यादा वोट, रणबीर गंगवा बेशक अपना पहला चुनाव हार गए थे लेकिन चुनौती भी तो उन्होंने किसी छोटे नेता को नहीं दी थी। बल्कि स्व. भजनलाल की पत्नी जसमा देवी को दी थी। अथक प्रयास के बावजूद गंगवा बेशक चुनाव हार गए थे लेकिन लोगों के बीच अपनी पैठ भी बनाई थी। इसी का नतीजा था कि रणबीर गंगवा को इन चुनावों के दौरान 22 हजार 500 से भी ज्यादा वोट मिले थे।

जहां से हारे वहीं से 2 बार जीत की दर्ज,
रणबीर गंगवा ने नलवा विधानसभा से जब पहली बार चुनाव लड़ा था, तब वे हार गए थे, लेकिन खुद हार नहीं मानी थी। जिस विधानसभा सीट से वे एक बार हारे थे, उसी सीट पर 2 बार उन्होने जीत भी दर्ज की है। कैसे? बताते हैं आपको। साल 2014 में इनेलो की सीट पर एक बार फिर नलवा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत कर भी दिखाया। फिर इसके बाद उन्होंने साल 2019 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और भाजपा की ही टिकट पर नलवा से चुनाव लड़ा। इस बार फिर रणवीर गंगवा ने चुनाव को जीत कर दिखाया। इस जीत के बाद उनको हरियाणा विधानसभा का डिप्टी स्पीकर बनाया गया।

युवा पंचों के लिए प्रेरणा की मिसाल हैं गंगवा,
रणबीर गंगवा आज के युवा पंचों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत हैं। ऐसे युवा पंचों के लिए डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा का जीवन संघर्ष काफी प्रेरणा देता रहेगा। डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा ने राजकीय महाविद्यालय हिसार से यूजी की डिग्री हासिल की। इसके बाद वर्ष 1990 में उन्होंने पहला चुनाव पंच पद के लिए लड़ा और जीत हासिल की और वो भी महज़ 26 साल की उम्र में। ये वो उम्र है जब युवा कॉलेज की पढ़ाई से छूटकर अपने लिए नौकरी की तलाश करते हैं। ऐसे में रणबीर गंगवा ने पंच का चुनाव जीतकर गांव की जिम्मेदारी संभालने की ठानी थी। डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा ने राजकीय महाविद्यालय हिसार से यूजी की डिग्री हासिल की। इसके बाद वर्ष 1990 में उन्होंने पहला चुनाव पंच पद के लिए लड़ा और जीत हासिल की और वो भी महज़ 26 साल की उम्र में। ये वो उम्र है जब युवा कॉलेज की पढ़ाई से छूटकर अपने लिए नौकरी की तलाश करते हैं। ऐसे में रणबीर गंगवा ने पंच का चुनाव जीतकर गांव की जिम्मेदारी संभालने की ठानी थी।