सुभाष चंद्रा ये वो नाम है, जिससे हर कोई वाकिफ है। खासतौर पर तो तब जब सुभाष चंद्रा का नाम सुनते ही मन में जी न्यूज का ख्याल एकदम से आने लगता है। सुभाष चंद्रा एक जानेमाने बिजनेसमैन हैं, राजनीतिज्ञ हैं और एस्सल समूह के अध्यक्ष भी हैं। एक समय ऐसा था, जब सुभाष चंद्रा मीडिया मुगल कहलाने लगे थे। आज के इस एसएनए में हम सुभाष चंद्रा के बारे में ही जानेंगे। क्योंकि सुभाष चंद्रा कोई आम इंसान नहीं है, उनका जीवन आज के समय में युवाआें को प्रेरणा देता है। हरियाणे की माटी से उठा ये शख्स देश से लेकर विदेश तक पहचाना जाता है। तो आइए फिर सुभाष चंद्रा के जीवन के बारे में जानते हैं और ये भी जानेंगे कि आखिर किस तरह से सुभाष चंद्रा हरियाणे के गांव से सफलता के पटल पर जा बैठा।
सुभाष चंद्रा का जन्म 30 नवंबर सन 1950 में हुआ था। ये वही साल है जब देश का संविधान लागू हुआ था। सुभाष चंद्रा 67 वर्ष के हैं और वे हरियाणा के हिसार जिले से ताल्लुक रखते हैं। हिसार जिला वैसे ठेठ जाटों का रूतबा और खाप पंचायतों के लिए एक समय पर मशहूर था। सुभाष चंद्रा ऐसे समय में बिजनेस मैन बनने का खाब बुनने लगे थे, जब हरियाणा का पहला पेशा ही मूल रूप से खेती हुआ करता था। परिवार के बिना कोई भी शख्स जिंदगी में सफलता के मुकाम तक नहीं जा सकता है। लिहाजा ऐसे में उनके परिवार के बारे में भी जानना जरूरी है। उनके पिता का नाम नंदकिशोर गोयनका और माता का नाम तारा देवी गोयनका है। जबकि सुभाष चंद्रा के 3 भाई भी हैं। लक्ष्मी नारायण गोयल, जवाहर गोयल व अशोक गोयल सुभाष चंद्रा विवाहित हैं और उनकी पत्नि का नाम सुशीला देवी है। सुभाष चंद्रा के 2 बेटे हैं। पुनित गोयनका और अमित गोयनका। दोनों ही पिता की तरह जाने माने बिजनेमैन हैं।
पढ़ाई बीच में छोड़ बिजनेस में बंटाया हाथ, सुभाष चंद्रा का जन्म हिसार जिले के एक छोटे से गांव के एक बनिया परिवार में हुआ था। परिवार बनिया खानदान से ताल्लुक रखता था, लिहाजा बिजनेस वाला असर तो पड़ना ही था। साल 1965 में 15 वर्ष की उम्र में 10वीं कक्षा की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ा और फिर सुभाष चंद्रा ने अपने परिवार के व्यवसाय को एक कमीशन एजेंट के रूप में संभाला। जो भारतीय खाद्य निगम को चावल की आपूर्ति करता था। फिर खुद का शुरू किया बिजनेस, सुभाष चंद्रा ने एस्सेल पैकेजिंग के नाम से स्वयं की विनिर्माण व्यवसायिक कंपनी की स्थापना की। जो टूथपेस्ट और अन्य लचीले पदार्थों के लिए प्लास्टिक ट्यूबों की पैकजिंग करती है। इसी के साथ सुभाष चंद्रा ने वर्ष 1989 में एस्सेल वर्ल्ड नामक एक मनोरंजक पार्क की स्थापना की, जिसे उत्तर बॉम्बे में स्थापित किया गया था।
जीटीवी नाम से सैटेलाइट चैनल की शुरूआत, बिजनेस के क्षेत्र में सुभाष चंद्र एक बार आगे बढ़े, तो फिर उन्होंने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1992 में उन्होंने ली का शिंग के साथ भारत के पहले हिंदी भाषा केबल चैनल की शुरूआत की। जिसका नाम था ज़ी टीवी। उनका टीवी चैनल 959 मिलियन लोगों तक पहुंचा। लोकप्रियता को देखते हुआ उनके चैनल जी का प्रसारण 169 देशों में किया जा रहा है। फिर इसके बाद उन्होंने ज़ी चैनल की सफलता के बाद भारत में पहली लॉटरी और पहले डिश टीवी को भी लॉन्च किया।
सैटेलाइट के बाद प्रिट मीडिया में भी रखे कदम, जैसा कि हमने शुरूआत में ही कहा था कि सुभाष चंद्रा का जीवन आज के समय में युवाओं के लिए प्रेरणा है। सुभाष चंद्रा लगातार आगे बढ़ते रहे और बिजनेस को नए आयाम देते रहे। सैटेलाइन चैनल जी की अपार सफलता के बाद उन्होंने प्रिंट मीडिया में भी कदम रखा। वर्ष 2005 में उन्होंने दैनिक भास्कर ग्रुप के साथ एक भारतीय ब्रॉडशीट अखबार डीएनए यानि के डेली न्यूज एंड एनालिसिस का शुभारंभ किया। वर्ष 2005 में उन्होंने दैनिक भास्कर ग्रुप के साथ एक भारतीय ब्रॉडशीट अखबार डीएनए यानि के डेली न्यूज एंड एनालिसिस का शुभारंभ किया।
जिसे पहली बार मुंबई में प्रकाशित किया गया और उसके बाद अहमदाबाद, पुणे, जयपुर, बेंगलुरु और फिर इंदौर में। उस समाचार पत्र ने ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ को भी चुनौती दे दी थी और भारत में एक ऑल- कलर पेज फॉर्मेट पेश करने वाला पहला अंग्रेज़ी दैनिक ब्रॉडशीट समाचार पत्र बन गया। ग्लोबल इंडियन एंटरटेनमेंट पर्सनेलिटी ऑफ द ईयर से सम्मानित वर्ष 2004 में उन्हें ग्लोबल इंडियन एंटरटेनमेंट पर्सनेलिटी ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्हें मीडिया के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। बिजनेस स्टैंडर्ड के द्वारा बिजनेस ऑफ द ईयर के रूप में सम्मानित हुए। स्टार गिल्ड अवार्ड साल 2010 में मिला। भारतीय न्यूज ब्रॉडकास्टिंग पुरस्कार और वर्ष 2011 में अंतर्राष्ट्रीय एमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी संस्मरण शीर्षक वाली पुस्तक ‘जेड फैक्टर’ माई जर्नी एज द राँग मैन का सह- संपादन प्रांजल शर्मा ने किया और जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 रेसकोर्स रोड, नई दिल्ली में विमोचन भी किया था। उनकी संस्मरण शीर्षक वाली पुस्तक ‘जेड फैक्टर’ माई जर्नी एज द राँग मैन का सह- संपादन प्रांजल शर्मा ने किया और जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 रेसकोर्स रोड, नई दिल्ली में विमोचन भी किया था।
राज्यभा सांसद बने चंद्रा, सुभाष चंद्रा 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में थे। तब बीजेपी ने उन्हें समर्थन दिया था। कांग्रेस के 14 वोट रद्द हुए थे। दरअसल राज्यसभा चुनाव में एक खास तरह के पेन का इस्तेमाल किया जाता है। सब घटनाक्रम के बाद सुभाष चंद्रा चुनाव जीत गए थे। उस समय ये मुददा काफी गर्म रहा था और विवादों में भी रहा था। सुभाष चंद्रा हरियाणा से निर्दलीय राज्यसभा सांसद रहे हैं और उनका 6 साल का टर्म हो चुका है। तो वहीं बीते साल राज्यसभा के जो चुनाव हुए थे, उसमें वे राजस्थान से मैदान में उतरे थे। क्योंकि हरियाणा में पक्ष में नंबर गेम नहीं बना था। उन्होंने राजस्थान से मैदान में उतरने की रणनीति बनाई थी और तब वे बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे थे। जबकि साल 2016 में राज्यसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी का समर्थन प्राप्त था। राज्यभा सांसद बने चंद्रा, सुभाष चंद्रा 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में थे। तब बीजेपी ने उन्हें समर्थन दिया था। कांग्रेस के 14 वोट रद्द हुए थे। दरअसल राज्यसभा चुनाव में एक खास तरह के पेन का इस्तेमाल किया जाता है। सब घटनाक्रम के बाद सुभाष चंद्रा चुनाव जीत गए थे। उस समय ये मुददा काफी गर्म रहा था और विवादों में भी रहा था। सुभाष चंद्रा हरियाणा से निर्दलीय राज्यसभा सांसद रहे हैं और उनका 6 साल का टर्म हो चुका है। तो वहीं बीते साल राज्यसभा के जो चुनाव हुए थे, उसमें वे राजस्थान से मैदान में उतरे थे। क्योंकि हरियाणा में पक्ष में नंबर गेम नहीं बना था। उन्होंने राजस्थान से मैदान में उतरने की रणनीति बनाई थी और तब वे बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे थे। जबकि साल 2016 में राज्यसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी का समर्थन प्राप्त था।
सुभाष चंद्रा की गिनती देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में होती है। सीएसआर के तहत भी उनका ग्रुप अहम योगदानों के लिए जाना जाता है। वे भारत में धर्मार्थ संस्थान एकल विद्यालय फाउंडेशन के चेयरमैन हैं। दावा किया जाता है कि इसके माध्यम से करीब 40000 गावों के 11 लाख से भी ज्यादा आदिवासी छात्रों को मुफ्त शिक्षा दी जा रही है।