क्या हरियाणा में भाजपा और जजपा में सबकुछ ठीक ठाक चल रहा है? या फिर ये गठबंधन कहीं बीच में टूट तो नहीं जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि सत्ता की रेस में भाजपा आगे निकल जाए और जजपा कहीं इस रेस में पीछे छूट जाए? जेजेपी की जिस चाबी के सहारे भाजपा ने सत्ता का जो दरवाजा खोला था, क्या वो चाबी टिकाउ तो है ना? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि जेजेपी नाम की चाबी भाजपा के लिए दरवाजे ही बंद कर दे? ये तो सिर्फ सवाल हैं और सवाल उठने लाजिमी भी हैं। क्योंकि कहीं ना कहीं ऐसे मौके आए, जब ये लगा कि हरियाणा की सरकार का गठबंधन दरकने लगा है। आज के इस एसएनए में हम ऐसे ही उठते सवालों के जवाब तलाशें और देखेंगे कि गठबंधन को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं वो किस हद तक जायज हैं? ..हरियाणा में राजनीति की सत्ता के सिंघासन पर गठबंधन की सरकार आसीन है। हरियाणा की भाजपा सरकार का पहला टर्म तो सही सलामत था लेकिन दूसरे टर्म में जेजेपी नाम का इंजन भाजपा की रेलगाड़ी में जुड़ा। तो वहीं अब ये अंदेशा लगाया जाने लगा है कि कहीं ये इंजन गाड़ी से अलग तो नहीं हो जाएगा। इसका हालिया अंदेशा जेजेपी नेता दिग्विजय चौटाला के एक बयान से लगाया जा सकता हे। उन्हांेने बयान दिया कि अगर हमारी पार्टी को 46 सीटें मिली होती तो बुढ़ापा पेंशन 5100 कर दिया होता। यानि के वे दबी जुबान में कहीं ना कहीं भाजपा की नीति पर सवाल जरूर उठा गए…भाजपा के पोस्टरों से जजपा गायब,इसकी ताजातरीन वजह आगामी आदमपुर विधानसभा उपचुनाव है, जहां जेजेपी नेताओं ने प्रचार के लिए लगाए शुरुआती पोस्टरों से अपनी पार्टी को स्पष्ट रूप से हटाए जाने की शिकायत की है । पहले आदमपुर उपचुनाव में प्रचार के दौरान जेजेपी थोड़ी साइलेंट दिखाई दी। इतना ही नहीं, 2024 के हरियाणा चुनावों के लिए तैयार किये जा रहे भाजपा के सोशल मीडिया अभियान में भी जेजेपी का कहीं कोई जिक्र नहीं है । उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और जेजेपी के अन्य नेताओं की घबराहट में और बढ़ोत्तरी करने वाले कारकों में उनकी पार्टी के नेताओं का तोड़ा जाना और भाजपा नेताओं एवं निर्दलीय विधायकों के बीच हुई एक बंद दरवाजे वाली बैठक शामिल है…भाजपा के आईटी सेल से भी जजपा गायब,जजपा के लिए एक और शिकायत की बात यह है कि साल 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए पिछले हफ्ते भाजपा आईटी सेल द्वारा शुरू किए गए सोशल मीडिया अभियान से इसे बाहर रखा गया है। इनमें से एक पोस्टर में लिखा है, ‘हरियाणा ने ठाना सै, तीसरी बार मनोहर ल्याणा सै (हरियाणा ने मनोहर को तीसरी बार सत्ता में लाने की ठान ली है)। अन्य पोस्टरों में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तस्वीरें हैं, जिनकी टैगलाइन है ‘मनोहर म्हारा हरियाणा (हमारा हरियाणा मनभावन है)’, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री ही भाजपा के चुनाव अभियान का प्रमुख चेहरा होंगे। जजपा महासचिव दिग्विजय चौटाला, जो उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई हैं, उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी नेताओं की तस्वीरों को प्रचार सामग्री में बाहर रखे जाने पर उन्होंने आपत्ति जताई थी, खासकर तब जब दोनों पार्टियां हरियाणा के सत्तारूढ़ गठबंधन में भागीदार है…जजपा छोड़ भाजपा में गए 150 कार्यकर्ता, दरअसल जननायक जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य एवं उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के विशेष सचिव रह चुके महेश चौहान समेत करीब डेढ़ सौ जजपा कार्यकर्ताओं की गुरुग्राम में भाजपा में एंट्री हुई है। इसे राज्‍य के सियासी गलियारों में सामान्य राजनीतिक घटनाक्रम नहीं माना जा रहा है। भाजपा ने अपनी सरकार में सहयोगी जननायक जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को जिस तरह पार्टी में शामिल कराया है, उसे देखकर लग रहा है कि भविष्य में दोनों दलों के बीच दूरियां कम होने की बजाय बढ़ेंगी ही। इस पूरे घटनाक्रम का भाजपा व जजपा के राजनीतिक रिश्तों पर असर पड़ना तय है…नेताओं का दलबदल बिगाड़ सकता है मामला, धनखड़ ने जजपा के साथ भाजपा के रिश्‍ते को मजबूत बताया और इसके आगे भी कायम रहने की बात कही, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस ‘पार्टी बदल’ प्रकरण से गठबंधन में दरार तो दिखने लगी है। इससे पहले भी भाजपा और जजपा गठबंधन में दरार आई थी, जब ओमप्रकाश धनखड़ ने स्‍थानीय निकाय चुनाव में जजपा से गठजोड़ तोड़कर भाजपा के अकेले मैदान में उतरने की घोषणा कर दी थी। बाद में केंद्रीय नेतृत्‍व के हस्‍तक्षेप से कुछ कुछ ठीक किया गया…भाजपा का एक धड़ा जेजेपी के खिलाफ, कांग्रेस व इनेलो के निशाने पर रहने वाली जजपा को भाजपा में एक ऐसे धड़े के विरोध का अक्सर सामना करना पड़ रहा है, जो यह कभी नहीं चाहता कि भाजपा के साथ जजपा का गठबंधन अधिक लंबा चले। इसके पीछे इस तबके की अपनी दलीलें हैं। आदमपुर में भाजपा की जीत के बाद पार्टी पर जजपा के साथ गठबंधन तोड़ने का दबाव बना हुआ है। मंत्री बनने की चाह रखने वाले निर्दलीय विधायक भी चाहते हैं कि भाजपा व जजपा का गठबंधन टूट जाए, ताकि वह सरकार में शामिल होकर अपना उद्देश्य पूरा कर सकें।
भाजपा का दूसरा धड़ा जेजेपी के साथ , दूसरी तरफ, भाजपा में एक तबका ऐसा भी है, जो इस गठबंधन को आगे बढ़ाए रखने के हक में है। गठबंधन के पैरोकार भाजपा नेताओं की दलील है कि मिशन 2024 में पार्टी को यदि जाटों के वोट चाहिए तो जजपा को साथ रखकर चलना होगा। सिर्फ गैर जाट मतों से भाजपा का काम नहीं चलने वाला है। ऐसे में भाजपा हाईकमान इस संवेदनशील मुद्दे पर आनन-फानन में फैसला लेने के बिल्कुल भी हक में नहीं है…गुरूग्राम की एक रैली ने उठाई थी शंका, सितंबर के महीने मे गुरुग्राम में भाजपा सांसदों की बैठक के बाद जिस तरह मुख्यमंत्री मनोहर लाल, पार्टी प्रभारी बिप्लब कुमार देब, प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और प्रांतीय संगठन मंत्री रवींद्र राजू पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने पहुंचे, उससे यही संदेश गया कि गठबंधन में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। लेकिन, लोगों में कोई गलत संदेश न जाए और गठबंधन की गरिमा बरकरार रहे, इसके लिए भाजपा व जजपा के आशावादी नेता संयुक्त रैली करने की योजना बना रहे हैं…गठबंधन के बावजूद भाजपा नेता को ही तरजीह, हरियाणा में भाजपा-जजपा सत्ता के साथी हैं, दोनों दलों के संगठन का आपस में गठबंधन नहीं है। सरकार में साथ रहते गठबंधन दल तीनों विधानसभा उपचुनाव मिलकर लड़ चुके हैं। हालांकि, तीनों उपचुनाव में उम्मीदवार भाजपा का ही रहा। 2024 का विधानसभा चुनाव साथ या अलग-अलग लड़ने को लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है…अलग लड़ा पंचायती चुनाव, ताजा पंचायती राज चुनाव भाजपा-जजपा ने अलग-अलग लड़ा। भाजपा ने जिला परिषद की 102 सीटों पर पार्टी सिंबल पर उम्मीदवार उतारे। वहीं, जजपा ने सिर्फ तीन जगह ही पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ा। इसमें खास बात यह रही कि जहां भाजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे, वहां जजपा ने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। भाजपा ने जजपा के लिए कुरुक्षेञ और नूंह जिलों में उनके प्रभाव वाली तीन सीटें छोड़ दी थीं। पंचायती राज चुनाव साथ लड़ने को लेकर दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हुआ था। भाजपा प्रदेश चुनाव प्रचार समिति ने जिला परिषद चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़ने का फैसला जिला इकाइयों पर छोड़ा था। जजपा ने भी पॉलिटिकल अफेयर कमेटी की बैठक में यही फैसला लिया। जिला इकाइयों की घोषणा पर ही जजपा ने केवल तीन जगह सिंबल पर अपने उम्मीदवार उतारे। इसी साल निकाय चुनाव से पहले भाजपा ने अलग मैदान में उतरने का निर्णय लिया था, जिसे हाईकमान के दबाव में बाद में बदलना पड़ा। निकाय चुनाव दोनों दलों ने गठबंधन के तहत ही लड़ा था। भाजपा ने जजपा के लिए नगर परिषद और नगरपालिकाओं की सीटें छोड़ दी थीं…अब तीन नगर निगमों पर निगाहें, पंचायत चुनाव निपटने के बाद अब दोनों दलों की निगाहें गुरुग्राम, फरीदाबाद और मानेसर नगर निगम के चुनाव पर टिक जाएंगी। दोनों ही दल इन निगमों पर अपना कब्जा जमाना चाहेंगे। मानेसर नगर निगम में पहली बार ही चुनाव होना है। राजनीतिक तौर पर यह तीनों निगम बेहद अहम हैं। अभी यहां से सांसद व अधिकतर विधायक भाजपा के ही हैं। इस चुनाव में भाजपा-जजपा साथ मैदान में उतरेंगे या नहीं, इसका फैसला आने वाले दिनों में हो जाएगा। चूंकि, 2024 के चुनाव से पहले शहरी क्षेत्र में यह बड़ा चुनाव होना है।…राहें जुदा करने को लेकर जल्दबाजी नहीं, भाजपा-जजपा में गठबंधन से जुदा होने को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं है। सीएम मनोहर लाल व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला कदम से कदम मिलाकर सरकार चला रहे हैं। संगठन के तौर पर दोनों दलों ने अगले विधानसभा चुनाव के लिए अपनी तैयारियां तेज की हुई हैं। जजपा ने नौ दिसंबर को भिवानी में अपने चौथे स्थापना दिवस पर कामयाब रैली कर अपनी त्यारिया शुरू कर दी है। इस रैली से जजपा की भविष्य की राजनीतक राह तय हो चुकी है। वही अब देखना होगा कि बीजेपी की अगली रणनीति क्या रहती है वह बयान देने में नहीं काम करने में विश्वास रखते हैं देखना होगा 2024 में ऊंट किस करवट बैठेगा।