हरियाणा भाजपा की एक ऐसी नेता जिसने राजनीति के लिए आईआरएस की नौकरी छोड़ दी ओर फिर राजनीति में एंट्री भी ऐसी मारी कि जहां भाजपा पैर तक ना रख पाई थी, वहां पर कमल खिला दिया। सोच में पड़ गए? कि आखिर वो महिला है कौन? ज़रा ध्यान से सोचिए कि भाजपा आज तक हरियाणा में कमल कहां नहीं खिला पाई थी। अब भी नहीं सोच पाए, तो चलिए हम बता ही देते हैं। अजी और कौन, बात कर रहे सुनीता दुग्गल की। सिरसा में सुनीता दुग्गल ने पहली बार भाजपा का कमल खिलाया और वो भी इनेलो के गढ़ में। तो आज हम हरियाणा भाजपा की ऐसी ही महिला नेत्री के बारे में जानेंगे जो आज भाजपा के सांसद है और सदन में अपनी दहाड़ से सबका ध्यान आकर्षित करती हैं।
सुनीता दुग्गल का जन्म 29 अप्रैल 1968 को रोहतक में हुआ था। रोहतक वही जगह है, जो कि हुड्डा का गढ़ मानी जाती है। सुनीता दुग्गल 54 वर्ष की हैं और शादीशुदा हैं। मौजूदा समय में सुनीता दुग्गल सिरसा सीट से भाजपा की सांसद हैं। उनके पति राजेश दुग्गल आईपीएस हैं और हरियाणा में एसपी के पद पर तैनात हैं। एथलीट हुआ करती थीं दुग्गल, कॉलेज के दिनों में सुनीता दुग्गल खेलों के प्रति बेहद की सजग हुआ करती थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद कहा था कि वे स्वीमिंग से लेकर हॉर्स राइडिंग तक करना जानती हैं। वे हर उस खेल में माहिर हैं, जो उनके भाई को आते हैं। यहां तक कि उन्होंने तो स्काई डाइविंग जैसी एडवेंचर्स स्पोर्टस गेम में भी हाथ आजमाए हुए हैं। हरियाणा से इकलौती महिला सांसद , मौजूदा समय में हरियाणा से लोकसभा पहुंचने वाली एकमात्र महिला सांसद हैं सुनील दुग्गल, सुनीता दुग्गल भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की सदस्य हैं। इसके अतिरिक्त भाजपा की हरियाणा इकाई की उपाध्यक्ष हैं।
22 साल तक संभाली आयकर विभाग में कमान, जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि राजनीति के लिए सुनीता दुग्गल ने आईआरएस की नौकरी छोड़ दी। तो वहीं आपको बता दें कि उन्होने 22 साल तक आयकर विभाग में कमान संभली थी। सुनीता दुग्गल ने केमिस्ट्री से एमएससी भी किया हुआ है। हरियाणा भाजपा की ये महिला नेता जितनी राजनीति में तेज है, उतनी ही तेज पढ़ाई लिखाई में भी रही। क्योंकि केमिस्ट्री से एमएससी करना कोई हलवा बनाने जैसा आसान तो है नहीं। 2014 में पहली दफा लड़ा चुनाव, सुनीता दुग्गल ने अपनी जिंदगी का पहला चुनाव साल 2014 में लड़ा था। विधानसभा का चुनाव उन्होंने लड़ा था। रतिया से वे मैदान मे पूरे दमखम के साथ उतरी थीं। अपने प्रतिद्वंदी को कड़ी टक्कर भी दी थी। लेकिन अफसोस कि वे चुनाव जीत नहीं पाई। इनेलो के रविंदर बलियाला ने उन्हें हरा दिया था। लेकिन इसमे बड़ी बात तो ये रही कि सुनीता दुग्गल महज 453 मतों से ही हारी थीं, जो कि कोई बड़ा आंकड़ा नहीं है।
पहली ही बार मे मिले 50 हजार से ज्यादा वोट, सुनीता दुग्गल बेशक पहला चुनाव ना जीत पाई हों लेकिन उन्होनें लोगों का दिल जरूर जीता था। जिस तरीके से उन्होंने चुनाव प्रचार किया था, उससे कहीं ना कहीं लोग उनसे प्रभावित जरूर थे और इसी का नतीजा था कि सुनीता दुग्गल को तकरीबन 50 हजार से भी ज्यादा वोट मिले थे। तभी तो उनकी हार का अंतर महज 453 वोटों का ही था। फिर 2019 में सिरसा से लोकसभा का चुनाव लडा और कांग्रेस के अशोक तंवर को 309918 वोटों से हराया। और पहली बार सांसद बने। राजनीति में खूब मंझ गए हैं दुग्गल, बात जून 2022 की है जब रोहतक में संत कबीरदास के 624वें जयंती समारोह में सुनीता दुग्गल ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल को रिश्तेदारी में अपना मामा बता दिया था।
सांसद ने बाकायदा इस रिश्ते को स्पष्ट भी किया। सुनीता दुग्गल बोली कि रोहतक में मेरा नानका है। मैं यहां अक्सर आती रहती थी। यहीं कुछ पढ़ाई भी की। मुख्यमंत्री भी रोहतक जिले के हैं। इस तरह वह मेरे मामा हुए। मामा के नाते उन्हें मुझे कुछ न कुछ शगुन देना ही पड़ेगा। शगुन के नाम पर सांसद अपने मामा से करीब एक दर्जन घोषणाएं कराने में कामयाब हो गए थे। तो कह सकते हैं कि वो राजनीति में बहुत ही कम समय में परिपक्व हो गए है। ऐसा नहीं कि वह मुख्यमंत्री के साथ रिश्तेदारी निकाल कर सिर्फ जनता का फायदा ही देखते हैं वक्त आने पर मुख्यमंत्री के पक्ष में भी खड़े होते हैं बात 2022 की है मुख्यमंत्री मनोहर लाल को बदलने की अफवाहें बाजार में चल रही थी उस वक्त सांसद ने उस वक्त भाजपा नेत्री ने अपना संगठनात्मक भूमिका निभाई और मुख्यमंत्री का उपलब्धियां गिरवा दी थी. मैडम दुग्गल ने हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाओं को अफवाह बताया था। उन्होंने कहा कि मनोहर लाल अब तक के सबसे बेहतरीन सीएम हैं। मनोहर लाल ने प्रदेश का अभूतपूर्व विकास करवाया है।
अपने मुख्यमंत्री का बचाव करने के अलावा विरोधियों पर भी करारे हमले करती हैं, एक बार सुनीता दुग्गल ने इनेलो नेता अभय चौटाला के बयान पर पलट वार किया था जिसमें उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतने की बात कही थी। सांसद ने कहा कि जिला परिषद की कुछ सीट जीत कर, अभय सिंह विधानसभा और लोकसभा में जीत का सपना न देखें। एक विधायक के साथ साल 2024 में सरकार बनाने का दावा करना बेईमानी है।