पंजाब… यानि के पांच दरियाओं का राज्य। वो पंजाब जहां गुरू महाराज ने धर्म के रक्षा की खातिर खुद को कुर्बान कर दिया लेकिन किसी दूसरे धर्म को कबूल ना किया। तो वहीं उसी पंजाब में अब लोग धर्म परिवर्तन की राह पर है। पंजाब में पंज प्यारों की जमीन पर देखते ही देखते ईसाई पैर जमाने लगे हैं। अपने सिक्खी धर्म को छोड़कर यहां के लोग क्रिश्चियन धर्म को अपना रहे हैं। ये मामले कोई एकाध नहीं हैं बल्कि इनकी संख्या लाखों से उपर है। ये आंकड़ा अपने आप में ही चौंकाने वाले है। क्योंकि गुरू महाराज ने जिस धर्म के साथ लोगों को जीने का सलीक सिखाया, उसी धर्म को लोग अब त्याग रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों? क्या वजह है अपने इतिहास को भूल कर पंजाब के लोग धर्म का त्याग कर रहे हैं। सिक्खों का जो इतिहास इतना गौराविंत हो, जो दूसरे धर्मों और दुनिया को प्रेरणा देता है, अपने उसी धर्म से लोग विमुख क्यों हो रहे हैं?
पंजाब में शुरूआत में तो इसाइयों और उनके चर्च की संख्या गिनती के बराबर थी लेकिन समय बीतने के साथ चर्च व इसाइयों की गिनती बरसात के मशरूम की तरह फलने फूलने लगी है। पंजाब में धर्म परिवर्तन का मामला कोई नया नहीं है। क्योंकि आए साल कभी ना कभी ये देखने और सुनने को मिलता है कि पंजाब में फलां फलां जगह पर लोगों ने धर्म परिवर्तन कर लिया है ओर ये बड़ा की चिंता का विषय है। राजनीतिक विश्लेषक भी ये बताते हैं कि आजादी से पहले भी सिखों में अमृत प्रचार, आर्य समाज में शुद्धि और इस्लाम में तब्लीग और तंजीम आंदोलन चलाए गए थे। साल 2014 में कुछ ऐसी रिपोर्टें प्रकाशित हुईं थी, जिसमें दावा किया गया था कि लगभग 8000 ईसाइयों को सिख धर्म में परिवर्तिन किया गया था। हालांकि उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि हम अपने राज्य में जबरन धर्म परिवर्तन नहीं होने देंगे लेकिन अफसोस कि तब भी पंजाब में धर्म परिवर्तन हुआ ही था। 3 लाख से उपर पहुंची जनसंख्या, साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में ईसाइयों की कुल जनसंख्या 3 लाख 48 हजार थी। लेकिन अब नरूला मिनिस्ट्री से जुड़े लोगों की संख्या ही 3 लाख से पार हो चुकी है। यानी राज्य में ईसाई मिशनरियों के जाल में फँसकर ‘पगड़ी वाले ईसाईयों’ की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि पंजाब में हो रहे धर्मांतरण के पीछे सबसे बड़ा हाथ नरूला का ही है। नरूला जैसे लोगों की मिनिस्ट्री सभी 23 जिलों में फैली हुई हैं। ये मिशनरियाँ माझा और दोआबा बेल्ट के अलावा मालवा में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती इलाकों में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। पंजाब में ईसाइयत के प्रचार का बेड़ा उठाए लोगों की संख्या का कोई ठोस आँकड़ा नहीं हैं। लेकिन अनुमान के मुताबिक यहाँ पादरियों की संख्या 65,000 के करीब है। क्रिश्चियन फ्रंट के आँकड़ों के मुताबिक पंजाब के 12000 गाँवों में से 8000 गाँवों में ईसाई धर्म की मजहबी समितियाँ हैं। वहीं अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 4 ईसाई समुदायों के 600 से 700 चर्च हैं। इनमें से 60 से 70 प्रतिशत चर्च पिछले 5 सालों में अस्तित्व में आए हैं। धर्म परिवर्तन की मुख्य वजह आखिर है क्या?,पंजाब में जो धर्म का परिवर्तन होना तेजी से बढ़ा है उसका मुख्य कारण प्रशासन के काम काज की विफलता है। जो कि लोगों को समय रहते सुविधाएं मुहैया नहीं करवा पाया है। पंजाब के नीचले तबके के जो लोग हैं उन्हें प्रशासन मेडिकल, फाइनेंशियल और इकोनोमिक तोर पर सुविधाएं नहीं दे पाया। जिसके बाद से लाचार लोगों ने धर्म को परिवर्तन करना बेहतर समझा। जो सुविधा अपने राज्य का प्रशासन नहीं दे पाया वो सुविधा क्रिश्चिन धर्म ने दी। मसलन लोगों को मेडिकल सुविधा, रूपये पैसे, बच्चों को एजुकेशन जैसी सुविधा इसाई मिशनरीज ने दी। जिसके बाद लोगों ने लालच वश इस तरह से धर्म परिवर्तन का राह पकड़ा।

पंजाब के सरहदी इलाकों में ज्यादा फैला है इसाई धर्म,चंडीगढ़ से अमृतसर और गुरदासपुर जाते हुए रास्ते में आपको जगह- जगह ईसाई पादरियों के पोस्टर और होर्डिंग दिखाई देंगे। पाकिस्तान से लगने वाले पंजाब के इलाक़ों में ईसाई धर्म का कितना प्रभाव है, इसका अंदाज़ा गांवों में बने चर्चों से लगाया जा सकता है। इनमें से अधिकांश नए चर्च निजी तौर पर प्रचार करने वाले पादरियों के द्वारा बनाए गए हैं। कई जगहों पर तो ईसाई धर्म मानने वाले लोगों ने घरों में ही चर्च बना लिए हैं। बटाला, गुरदासपुर, फ़तेहगढ़ चूड़ियां, डेरा बाबा नानक, मजीठा, अजनाला और अमृतसर के ग्रामीण इलाके इसमें शामिल हैं । गुरदासपुर ज़िले में पादरी सैमुअल व्यक्तिगत रूप से ईसाई धर्म का प्रचार करते हैं, वो खुद ही कहते हैं कि अमीर और ग़रीब सहित सभी वर्गों के लोग उनके पास आते हैं। वो तो खुलेआम कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति जो ईसाई है और उसे बाइबल का ज्ञान है, वो पास्टर बन सकता है। इसी के तहत बहुत सारे पास्टर ऐसे हैं जो कि व्यक्तिगत रूप से पंजाब में अलग- अलग जगहों पर प्रचार करते हैं। कुछ पादरी तो ऐसे हैं जिन्होंने मोहाली, जालंधर और पंजाब जैसे बड़े शहरों में अपने निजी डेरे तक स्थापित कर लिए हैं। प्रचार के विभिन्न माध्यमों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ओर उनका धर्म बदलवाते हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी जता चुका है ऐतराज,पंजाब की शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी धर्म परिवर्तन के मामले पर ऐतराज जता चुकी है। वे तो सीधे सीधे पादरियों पर आरोप लगाते हैं कि साज़िश के तहत सिखों का जबरन धर्मांतरण किया जा रहा है। एसजीपीसी का आरोप है कि इसाई मिशनरी सिक्ख लोगो में भ्रम पैदा करते हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो हैं जिनमें कुछ पादरी चमत्कार दिखा कर मरीज़ों को ठीक करने का दावा करते हैं। ऐसा ही एक वीडियो बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर 1 अप्रैल 2022 को शेयर किया था। जिसमें जालंधर के पास खोजेवाल का एक पादरी चमत्कार करके मरीज़ों को ठीक करने का दावा करता दिखा। सिरसा ने अपने टवीट में पंजाब में हो रहे धर्म परिवर्तन का जिक्र किया था।…धर्म तो बदलता है लेकिन नहीं बदलती है लोगों की दिनचर्या, ये अपने आप में ही रोचक बात है कि पंजाब के लोग अपना धर्म तो बदल लेते हैं लेकिन अपनी दिनचर्या को बदल नहीं पाते हैं। मसलन वे धर्म तो बदलते हैं लेकिन साथ में पगड़ी भी पहनते हैं और गुरूद्वारे भी जाते हैं। सुबह उठकर पाठ पूजा भी करते हैं बस नाम के ही ईसाई धर्म में कनवर्ट हो जाते हैं। आखिर बचपन से जिस धर्म के साथ बड़े हुए हैं, उसे छोड़ पाना इतना आसान थोड़े होता है। बेशक पैसे और घर बार की लाचारी ने धर्म तो बदला दिया लेकिन उनकी दिनचर्या को बदल नहीं पाया। इसाई बनने के बावजूद क्यों नहीं नाम बदलते लोग, पंजाब में वेशभूषा के तोर पर अगर आप लोगों को देखेंगे तो लगेगा कि इसाई की संख्या यहां पर कम हैं। लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि लोगों ने यहां पर धर्म तो बदला है बस नहीं बदला है तो नाम। क्योंकि इसके पीछे कारण है दलित समुदाय के लोगों को मिलने वाला आरक्षण। सरहदी इलाक़ों में जो धर्मांतरण हो रहा है उस में ज्यादातर लोग ग़रीब और दलित वर्ग से आते है। खबरों की माने तो बहुत से दलित असल में ईसाई बन चुके है पर कागजों में दलित ही हैं क्योकि ईसाई समुदाय को कोई आरक्षण नहीं मिलता है। इसलिए लोग असल में ईसाई घर्म को तो मानते हैं पर वो ना तो आपना नाम बदलते है और ना ही कोई इसाई धर्म से जुड़ी सिंबल वाली चीज़ पहनते हैं। ताकि एक तो इनके इसाई होने का पता ना चले और दूसरा दलित व गरीब के नाम पर मिलने वाला आरक्षण भी चलता रहे। पंजाब में ईसाई समुदाय की संख्या को देखा जाए तो पता चलता है कि जिन लोगों ने धर्मांतरण किया है उन में से अधिकांश दलित समुदाय के लोग हैं।…ईसाई धर्म के भी हैं अनेको प्रकार, जिस प्रकार हिंदुओं व सिक्खों में अलग अलग संप्रदाय हैं, ठीक उसी प्रकार से इसाइयों में भी कई संप्रदाय हैं। कैथोलिक, ऑर्थोडॉक्स, प्रोटेस्टेंट, इसके अलावा चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया, साल्वेशन आर्मी, मेथोडिस्ट चर्च और कुछ निजी तौर पर भी मिशनरी काम करते हैं। सरल शब्दों में कहें तो पंजाब में ईसाई धर्म की कोई एक बॉडी नहीं है जो इसे नियंत्रित कर सके। डायोसिस ऑफ़ अमृतसर पूरी तरह से संगठित हैं और इस का नेतृत्व बिशप की और से किया जाता है। इसके अलावा कई पादरी ऐसे भी हैं जो निजी तौर पर काम करते हैं और वो किसी के नियंत्रण में नहीं है। पंजाब में ईसाई धर्म को संगठित करने के लिए मसीह महासभा भी है। लेकिन जो पादरी व्यक्तिगत रूप से अपने डेरे में प्रचार कर रहे हैं, उनका इस संस्था के साथ काई लेना देना नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि जो पादरी धर्म को बिजनेस की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, वो ग़लत है और ऐसे लोगों के कारण ही धर्म बदनाम हो रहा है। पंजाब पुलिस की एसआईटी धर्म परिवर्तन पर रखे नजर, पंजाब में धर्म परिवर्तन के मुददे पर जहां स्थानीय नेताओं ने आवाज उठाई, तो वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस मुददे पर बड़ी बात कही थी। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने धर्म परिवर्तन का मुददा उठाया था। पंजाब में एक रैली के दौरान उन्हांेने कहा था कि यहां बहुत बडी गिनती में धर्म परिवर्तन हो रहा है इस को रोकना होगा और बीजेपी ही इस को रोक सकती है।
कुल मिलाकर अपने ये रंगले पंजाब वाले लोग ‘पगड़ी वाला ईसाई’ बनते जा रहे हैं। ईसाइयों के लिए पंजाब धर्मांतरण की नई प्रयोगशाला नहीं है। लेकिन यहाँ सैकड़ों पादरी नए हैं। इन पादरियों में अमृत संधू, कंचन मित्तल, रमन हंस, गुरनाम सिंह खेड़ा, हरजीत सिंह, सुखपाल राणा, फारिस मसीह कुछ बड़े नाम हैं। इनका नाम इसलिए बड़ा है क्योंकि ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की संख्या बढ़ाने में इनका बड़ा योगदान है। ये सभी वे लोग हैं जो या तो पेशे से डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पुलिस, कारोबारी और जमींदार हैं। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो नौकरी या काम छोड़कर रविवार को प्रार्थना के नाम पर ईसाइयत का प्रचार करते हैं। कुल मिलाकर बात ये है कि सरकार धर्म परिवर्तन के मुद्दों पर उठे सवालों के जवाब ढूंढने की बात तो करती है लेकिन कहीं ऐसा ना हो कि जवाब ढूंढने में कहीं देर हो जाए और पंज प्यारों की ये जमीन इसाई मिशनरियों के नाम हो जाए।