जूतों की नाप लेते- लेते कब वो शख्स राजनीति की नाप लेने लगा पता हीं नहीं चला। जमीन पर बैठकर जूते बनाने वाला वही शख्स अपनी नजरें आसमान पर गड़ाए बैठा था। और कौन हरियाणा के पूर्व गृह राज्य मंत्री रहे गोपाल कांडा ही वो शख्स है, जिनकी हम बात कर रहे हैं। सुनने मे आपको अटपटा लग रहा होगा कि गोपाल कांडा का परिचय हमने आपको जूते बनाने वाले से दिया। आप सुनकर हैरान बेशक हो रहे होंगे कि जो शख्स हरियाणा का गृह राज्य मंत्री रहा वो आखिर जूते कैसे बना सकता है और कैसे इतनी जल्दी वो इतना लंबा सफर तय कर सकता है। तो फिर आइए, आज हम आपको गोपाल कांडा के रजनीतिक सफर के बारे में जानकारी देंगे। आपको ये भी बताएंगे फर्श से अर्श तक का सफर करने वाले गोपाल कांडा आखिर कैसे अर्श से फर्श पर आ पटके।
हरियाणा की राजनीति की जब भी बात आती है, तब गोपाल कांडा का नाम आ ही जाता है। ये एक ऐसी शख्सियत हैं जो चर्चित और विवादित दोनो हैं। उनके जीवन की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं रही है। एक छोटे से दुकानदार से लेकर एयरलाइंस के मालिक बनने तक का कांडा का सफर काफी अनोखा रहा है। गोपाल कांडा की एक संक्षिप्त जानकारी,गोपाल कांडा, जिनका असली नाम गोपाल कुमार गोयल है। सिरसा सीट से हरियाणा लोकहित पार्टी के विधायक है। हरियाणा की भाजपा- सरकार को गोपाल कांडा की पार्टी ने समर्थन दिया हुआ है। गोपाल कांडा ने जूते-चप्पल की छोटी सी दुकान से बड़े कारोबारी तक का सफर तय किया। गोपाल कांडा का गुरुग्राम में एक होटल है और गोवा में एक कैसिनो भी है। 2005 में गोपाल कांडा ने एमडीएलआर एयरलाइंस शुरू की थी, लेकिन ये एयरलाइंस ज्यादा चली नहीं। गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा भाजपा में हैं। इसलिए गोवा की भाजपा सरकार से गोपाल के अच्छे संबंध हैं। गोपाल कांडा का नाम कई विवादों से जुड़ा। क्रिकेटर अतुल वासनी से मारपीट का मामला। अप्रैल, 2010 में सिरसा में इंडियन नैशनल लोकदल के नेता की पिटाई का मामला। साल 2010 में गैंगरेप का मामला। लेकिन इन सबमें में सबसे बड़ा विवाद रहा एयर होस्टेस गीतिका सुसाइड का मामला। कैसे पड़ा कांडा सरनेम?, 54 साल के गोपाल कांडा का पूरा नाम गोपाल गोयल कांडा है, जो हरियाणा के सिरसा जिले में स्थित बिलासपुर गांव के मूल निवासी हैं। उनके पूर्वज यहीं के एक बाजार में सब्जी की तौल का काम करते थे और यहीं से उन्हें कांडा सरनेम मिल गया। ऐसा इसलिए क्योंकि लोहे के बाट को स्थानीय भाषा में कांडा कहा जाता है। हालांकि उनके पिता मुरलीधर कांडा ये काम नहीं करते थे। वह जिले के एक अच्छे वकील थे। जब गोपाल कांडा को मांगना पड़ा था चंदा,जी हां, गोपाल कांडा ने अपनी जिंदगी में संघर्ष का समय भी देखा है। जब कारोबार के लिए गोपाल कांडा ने चंदा मांगा था। कहा जाता है कि वह जूते बनाने का कारोबार करते थे, जो कि विफल हो गया था। जिसके चलते गोपाल कांडा पर काफी कर्जा हो गया था। इसके बाद उन्होंने म्यूजिक शॉप खोली, लेकिन वो भी नहीं चली। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने जूते का शोरूम भी खोला लेकिन पैसे की तंगी के कारण 100- 100 रुपये का चंदा एकत्रित किया था। कहा जाता है कि उन्होंने टीवी रिपेयरिंग और इलेक्ट्रिशियन तक का भी काम किया था। लेकिन उनका जूते का कारोबार काफी आगे बढ़ा, जिसके बाद गोपाल कांडा ने 1998 में गुड़गांव में प्रॉपर्टी के कारोबार में कदम रख दिया। इस व्यापार में शुरुआत में उन्होंने छोटे प्लॉटों की खरीद से की थी, फिर धीरे-धीरे वह राज्य के बड़े रियल एस्टेट खिलाड़ी कहलाए जाने लगे। इसी के बाद वह कई राजनीतिज्ञों के संपर्क में आए थे। जहां से राजनीक सफर परवान चढ़ा था। पिता के नाम पर चलाई थी एयरलाइंस कंपनी, गोपाल कांडा ने अपने वकील पिता मुरलीधर लखराम के नाम पर एमडीएलआर नाम की एयरलाइंस कंपनी शुरू की थी। लेकिन इन सबमें बड़ी बात तो ये है कि एमडीएलआर एयरलांस के बही- खाते में भ्रष्टाचार की भरमार थी। जिसके बाद कांडा के हवाई सपने हवा ही हो गए थे। मुश्किल से दो साल चलने के बाद कांडा की हवाई कंपनी जमीन पर धड़ाम हो चुकी थी। गीतिका आत्महत्या मामले ने इसके ताबूत में आखरी कील गाड़ने का काम किया। जिसके बाद गोपाल कांडा अपने लिए नई ज़मीन की तलाश कर रहे थे और उसी दौरान कांडा ने ने होटल, कैसिनो, प्रापर्टी डीलिंग, स्कूल, कालेज और यहां तक कि लोकल न्यूज चैनल में भी हाथ आज़माया और खूब नाम कमाया।
लेकिन इतना कुछ करने के बाद से कांडा की निगाहें तो चील की तरह राजनीति पर ही टिकी हुई थी। कैसा रहा है राजनीतिक सफर?,कांडा के राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 2009 से होती है। इस साल उन्हें इनेलो से टिकट नहीं मिला था, तो उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। वह 6 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीत गए थे। इस जीत ने उनकी तकदीर को बदल दिया और वह राजनीति के किंगमेकर बन गए। इसके बाद से कांडा राजनीति के एक मुख्य चेहरे बन गए थे। वह हरियाणा के गृह मंत्री बने थे। बाद में वह शहरी निकाय, वाणिज्य और उद्योग मंत्री भी बने। हालांकि साल 2012 में गीतिका शर्मा मामले के सामने आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद कांडा को गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन वह साल 2014 में ही जेल से बाहर भी आ गए। जेल से रिहा होने के बाद गोपाल कांडा ने लोकहित पार्टी की स्थापना की। कांडा ने साल 2014 में भी चुनाव लड़ा था लेकिन वो चुनाव हार गए थे। फिर 2019 चुनाव लड़ा और इस बार वे चुनाव जीते। सिरसा में 602 वोटों के अंतर से जीते थे। हरियाणा में सरकारों के ‘संकटमोचन’ बने गोपाल कांडा, गोपाल कांडा हरियाणा की राजनीति में दो बार संकटमोचन की भूमिका निभा चुके हैं। यानि के जब भी हरियाणा में किसी पार्टी का पेंच फंसा, तो फिर गोपाल कांडा ने उस पेंच में नट बोल्ट कसने का काम किया था। साल 2019 में जहां गोपाल कांडा ने भाजपा जजपा गठबंधन सरकार को समर्थन दिया था। तो वहीं उन्होंने 2009 में भी ऐसा ही किया था। जब भूपेंद्र हुड्डा की अगुवाई में कांग्रेस 40 के आंकड़े पर अटक गई थी और ओपी चौटाला की इनेलो 31 पर अटकी हुई थी। तब 2009 में भी गोपाल कांडा विधायक बने थे और उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा के लिए निर्दलीयों का समर्थन जुटाया था। गोपाल कांडा की अगुवाई में कुल 7 विधायक तब कांग्रेस के समर्थन में आ गए थे। वहीं हरियाणा जनहित कांग्रेस के 6 विधायकों ने भी हुड्डा को समर्थन का ऐलान किया था। जिसके बाद गोपाल कांडा को भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मंत्रिमंडल में जगह मिली थी। गोपाल कांडा को तब राज्य में गृह राज्य मंत्री बनाया गया था। तो वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी गोपाल कांडा ने अपने इतिहास को दोहराया था। गोपाल कांडा के भाई ने ऐलान किया कि हम अपने साथ 5 से 6 विधायक लाए हैं और कुछ ऐसा ही हुआ। गोपाल कांडा के समर्थन के ऐलान के बाद 6 अन्य निर्दलीय विधायक भी बीजेपी के साथ आए थे। यानी भाजपा के पास 40 +7 47 विधायकों का समर्थन हो गया था। पार्टी बदलते चढ़े राजनीति की सीढ़ी, गोपाल कांडा लगातार पार्टी बदलते हुए राजनीति की सीढ़ी चढ़ते गए। सफर की शुरुआत बेशक जूते की एक दुकान से हुई। फिर 1996 में उन्होंने प्रॉपर्टी के कारोबार में कदम रखा और उसके बाद कामयाबी कदम चूमती चली गई। आगे के 15 साल में वह फर्श से अर्श तक जा पहुंचे। हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल के मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का साथ दिया। फिर उसके बाद कांडा ने 2004 में पलटी मारी और कांग्रेस की सरकार बनते ही कांग्रेस के साथ हो लिए। इसके बाद उनका कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता चला गया। एमडीएलआर एयरलाइंस तो नहीं चली लेकिन शॉपिंग मॉल और गोवा के होटल में कैसीनो, स्कूल, यूनिवर्सिटी और न्यूज़ चैनल चलते रहे। दौलत के साथ-साथ सियासी हैसियत भी बढ़ती चली गई और दबंगई इस कदर बढ़ गई कि संपत्ति की जांच करने आए आयकर विभाग के अफसरों तक को पीट दिया। क्या था गीतिका मर्डर मामला, गीतिका शर्मा गोपाल कांडा की एमडीएलआर कंपनी में एयर होस्टेस थीं। खबरों के मुताबिक गोपाल कांडा के साथ गीतिका का प्रेम प्रसंग था। वो शादी करना चाहती थीं। लेकिन गोपाल कांडा पहले से शादीशुदा थे लिहाजा गोपाल कांडा ने गीतिका से शादी से इनकार कर दिया था। इसके बाद अगस्त 2012 में गीतिका ने आत्महया जैसा खौफनाक कदम उठा लिया। मौत से पहले लिखी चिट्ठी में गीतिका ने गोपाल कांडा पर शारीरिक शोषण, आत्महत्या के लिए उकसाने और धोखाधड़ी के आरोप लगाए। सुसाइड नोट की वजह से दिल्ली पुलिस ने गोपाल कांडा के खिलाफ केस दर्ज किया। गिरफ्तारी हुई और गोपाल कांडा को मंत्री पद तक छोड़ना पड़ा था। 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट ने गोपाल कांडा को यौन शोषण के आरोप से मुक्त कर दिया, जिसके बाद ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। 100 करोड़ी महलनुमा घर में है हेलीपैड, गोपाल कांडा की सियासत ही नहीं, उसकी दौलत भी चौंकाने वाली है। कभी जूते की छोटी सी दुकान चलाने वाले कांडा के पास आज की तारीख में ऐसा किलानुमा महल है, जिसकी कीमत 100 करोड़ के आसपास है। सिरसा− ऐलनाबाद हाइवे पर ढाई एकड़ में फैला महलनुमा घर गोपाल कांडा की हैसियत बताता है। महलनुमा महल पर हैलीपैड बना है। कांडा की राजनीतिक पहुंच का अंदाजा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा भी यहां कई बार आ चुके हैं। कांडा के महल की चारदीवारी ग्रीन बेल्ट में पड़ती है लेकिन टाउन एंड कंट्री प्लानिंग महकमे का नोटिस भी इसकी एक ईंट तक नहीं हिला पाया। मंत्री बनते ही विरोधियों से लिए थे बदले, मंत्री बनने के बाद गोपाल कांडा ने अपने विरोधियों से पूरी तरह से बदला लिया। अप्रैल 2010 में सिरसा में सरेबाजार इनेलो नेता की पिटाई की।
नवंबर, 2010 में कांडा की कार में गैंगरेप हुआ। इसके बाद साल 2018 में फिर से एक विवाद सामने आया। क्रिकेटर अतुल वासन से कांडा का विवाद हुआ। जानकारी के मुताबिक अतुल वासन की कार गोपाल कांडा की कार से आगे चल रही थी। जिसका विवाद इस कदर बढ़ा कि क्रिकेटर अतुल वासन को भी बुरी तरह पीटा गया। लेकिन कांडा पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। दबदबा इतना ज्यादा था कि भाई गोविंद कांडा भी लालबत्ती लगी गाड़ी में पुलिस सुरक्षा के साथ खुलेआम घूमता रहा था। खराब छवि के बावजूद 2019 के चुनाव में जीते गोपाल कांडा, गोपाल कांडा की छवि बेशक ही कितनी दागदार क्यो ना रही हो लेकिन फिर भी वे साल 2019 में अपनी सिरसा सीट को बचा ले गए। हरियाणा विधानसभा चुनाव में गोपाल कांडा कड़े मुकाबले में 602 वोटों के अंतर से विजयी हुए। लिहाजा गोपाल कांडा ने बीजेपी को समर्थन देने का एलान किया था। और उसके बाद से वो सरकार के विश्वासपात्र बने हुए हैं। अक्सर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की शान में कसीदे पढ़ते हुए अक्सर उन्हें देखा जा सकता है।