चौटाला परिवार में विभाजन के बीज करीब 2014 मे ही पड़ गए थे। 2018 में इसकी फसल काटी गई है। इतने समय तक परिवार में कलह की आग को दबाने की हर मुमकिन कोशिश की गई, लेकिन इसको दावानल बनने से नहीं रोका जा सका। तमाम विवादों और वार-पलटवार के बीच जब दोनों भाइयों अजय और अभय चौटाला की दिल्ली मेें मुलाकात हुई थी तो एक बारगी उनके गिले-शिकवे दूर होते दिखे थे। लेकिन, उनकी कडि़यां जुड़ते-जुड़ते पूरी तरह टूट गईं। दोनों भाइयों की इस मुलाकात पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के फोन कॉल की भूमिका बताई जाती है। इनेलो से टूट कर बनी थी जेजेपी बताएंगे आपको परिवार के टूट की पूरी कहानी।
बताया जाता है कि अभय सिंह चौटाला जब अजय सिंह से दिल्ली छत्तरपुर स्थित सी-5 फार्म हाउस पर मिले तो उन्होंने सिर्फ सीएम दुष्यंत को बनाए जाने की घोषणा के अलावा अन्य सभी शर्तों को मान लिया था। इनमें दुष्यंत-दिग्विजय के खेमे को लोकसभा व विधानसभा चुनाव में आधी-अाधी सीट, पार्टी की संसदीय कमेटी में आधी सीट तथा पार्टी संगठन में भी आधी सीट देना शामिल था। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर अभय चौटाला का प्रस्ताव था कि जिसके खेमे के ज्यादा विधायक जीतेंगे वह सीएम बनेगा। बताया जाता है कि बाद में जब अभय ने अजय के साथ अपनी वार्ता की जानकारी पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल को दी तो उन्होंने अजय चौटाला से बात की। बादल ने भी अजय चौटाला से सीएम उम्मीदवार की घोषणा को टालने के लिए कहा, लेकिन अजय नहीं माने। इसके बाद दोनों भाइयों की जुड़ती दिख रही कडि़यां टूट गईं। अभय चौटाला ने इसके बाद अपनी पूर्व की तैयारियों के अनुरूप अजय चौटाला के इनेलो से निष्कासन की प्रक्रिया को सार्वजनिक कर दिया।
भतीजों की राजनीतिक चाल समय रहते समझ गए अभय चौटाला, इनेलो पर कब्जा जमाने वाली दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला की राजनीतिक चाल को चाचा अभय चौटाला समय रहते समझ गए थे। अभय को मालूम था कि गुरुग्राम में बैठे अजय चौटाला के पुराने साथी के दिमाग में क्या चल रहा है। इसलिए अभय चौटाला तो 1 नवंबर 2018 को दीपावली से पहले ही चाहते थे कि खुद ओमप्रकाश चौटाला दुष्यंत-दिग्विजय के बाद अजय चौटाला का निष्कासन कर दें और पार्टी की एकछत्र कमान उनके हाथ में दे दें। लेकिन, पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल द्वारा सुलह की कोशिशों के चलते अभय को दीपावली बाद तक रुकना पड़ा। राजनीतिक ताकत बन रही थी अभय की गरममिजाजी, दादा ओमप्रकाश चौटाला और पिता अजय सिंह चौटाला के जेल जाने के बाद पार्टी के संचालक बने चाचा अभय सिंह ने अपने भतीजे दुष्यंत चौटाला को मोदी लहर में सबसे मुश्किल लोकसभा सीट हिसार से दुष्यंत चौटाला चुनाव लड़वाया। दुष्यंत चौटाला को राजनीतिक सफर की शुरूआत ही कठिन परीक्षा से हुई थी। 2014 में हिसार से मोदी लहर में भाजपा और हजकां गठबंधन से उम्मीदवार कुलदीप बिश्नोई के खिलाफ अनुभवहीन दुष्यंत चौटाला को इनेलाे प्रत्याशी बनाया गया। हिसार पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल और उनके पुत्र कुलदीप बिश्नोई का गढ़ माना जाता था। ऐसे में कुलदीप को चुनाव हराना आसान नहीं था। उस समय बिश्नोई भाजपा-हजकां की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए भी प्रोजेक्ट किए गए थे। इस बेहद राजनीतिक परीक्षा में दुष्यंत चौटाला ने जब बाजी मार ली तो चौटाला परिवार के समर्थकों को यह कोई चमत्कार से कम नहीं लगा। देवीलाल के भक्त ही नहीं भाजपा और कांग्रेस ने भी तब चुनाव नतीजों से पूर्व प्रचार के दौरान राजनीतिक रूप से यह माना था कि अभय चौटाला ने ताऊ देवीलाल की विरासत पर कब्जा करने के लिए दुष्यंत को हिसार से चुनाव लड़वाया है।
अजय चौटाला ने कहा- मुझे पार्टी से क्यों निकाला, बाद में गरममिजाज अभय चौटाला से नाराज होकर जब ताऊ देवीलाल परिवार से जुड़े पुराने कार्यकर्ता हिसार नहीं बल्कि जींद,सिरसा, फतेहाबाद, भिवानी सोनीपत, रोहतक तक से दुष्यंत के पास आने लगे तो दुष्यंत-दिग्विजय ने अपने चाचा की गरममिजाजी को अपनी राजनीतिक ताकत बना लिया। जेल में बंद पति की राजनीतिक विरासत बचाने बेटों के साथ आईं नैना चौटाला, जेल में बंद अजय सिंह चौटाला से जुड़े नरममिजाजी कार्यकर्ता दुष्यंत की सादगी और दिग्विजय की युवा तुर्क छवि को पसंद करने लगे। दुष्यंत-दिग्विजय की विधायक मां नैना चौटाला भी पति की राजनीतिक विरासत बचाने के लिए बेटों के साथ आ गई। इसके बाद तो दुष्यंत-दिग्विजय के साथ कारवां जुड़ने लगा।
बसपा से समझौते से पहले चुपचाप अलग हो जाना चाहते थे दुष्यंत-दिग्विजय, इनेलो का जब अभय चौटाला ने बसपा से समझौता किया तो दुष्यंत-दिग्विजय को बड़ा दुख हुआ।
बेशक जेल से पैरोल पर आए दुष्यंत-दिग्विजय के पिता अजय सिंह चौटाला बसपा से समझौते को पार्टी हित में बताया, लेकिन दुष्यंत-दिग्विजय का कहना था कि यह समझौता उन दोनों भाइयों को दरिकनार करने के लिए किया गया था। बसपा से समझौते से पहले अभय चौटाला को उनसे संपर्क करना चाहिए था। इससे नाराज दुष्यंत-दिग्विजय ने जननायक सेवादल को सक्रिय कर दिया था। दोनों भाई चाहते थे कि ताऊ देवीलाल और अजय सिंह चौटाला के समर्थकों को जननायक सेवा दल के बैनर तले एकत्र कर लिया जाए लेकिन तभी इन दोनों भाइयों को राजनीतिक ज्ञान देने वाले एक मास्टरमाइंड ने इनेलो पर कब्जा करने की सीख दे दी। बताया जाता है कि इनेलो की सरकार के समय अजय सिंह चौटाला का समस्त आर्थिक कामकाज यही व्यक्ति देखता था। इस मास्टरमाइंड का मानना था कि प्रदेश महासचिव होने के नाते अजय सिंह चौटाला प्रदेश कार्यकार्यकारिणी की बैठक बुलाएंगे और इसमें अभय सिंह चौटाला अलग-थलग नजर आएंगे। तब पार्टी दुष्यंत-दिग्विजय की हो जाएगी। सूत्रों की माने तो इस मास्टरमाइंड ने इनेलो के 10 विधायकों से संपर्क किया हुआ था।
इसी तरह 2018 में फिर टूटकर इनेलो से जजपा का जन्म हुआ और पार्टी ने अपनी स्थापना के 1 वर्ष के भीतर ही 10 सीटें जीतकर सरकार में हिस्सेदारी कर ली। उसके बाद से इनेलो लगातार वनवास अज्ञातवास झेल रही है और लगातार गर्त में जाति जा रही है लेकिन ओम प्रकाश चौटाला और अभय चौटाला लगातार उसे पुनर्जीवित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं बेशक जेल से पैरोल पर आए दुष्यंत-दिग्विजय के पिता अजय सिंह चौटाला बसपा से समझौते को पार्टी हित में बताया, लेकिन दुष्यंत-दिग्विजय का कहना था कि यह समझौता उन दोनों भाइयों को दरिकनार करने के लिए किया गया था। बसपा से समझौते से पहले अभय चौटाला को उनसे संपर्क करना चाहिए था। इससे नाराज दुष्यंत-दिग्विजय ने जननायक सेवादल को सक्रिय कर दिया था। दोनों भाई चाहते थे कि ताऊ देवीलाल और अजय सिंह चौटाला के समर्थकों को जननायक सेवा दल के बैनर तले एकत्र कर लिया जाए लेकिन तभी इन दोनों भाइयों को राजनीतिक ज्ञान देने वाले एक मास्टरमाइंड ने इनेलो पर कब्जा करने की सीख दे दी। बताया जाता है कि इनेलो की सरकार के समय अजय सिंह चौटाला का समस्त आर्थिक कामकाज यही व्यक्ति देखता था। इस मास्टरमाइंड का मानना था कि प्रदेश महासचिव होने के नाते अजय सिंह चौटाला प्रदेश कार्यकार्यकारिणी की बैठक बुलाएंगे और इसमें अभय सिंह चौटाला अलग-थलग नजर आएंगे। तब पार्टी दुष्यंत-दिग्विजय की हो जाएगी। सूत्रों की माने तो इस मास्टरमाइंड ने इनेलो के 10 विधायकों से संपर्क किया हुआ था।
इसी तरह 2018 में फिर टूटकर इनेलो से जजपा का जन्म हुआ और पार्टी ने अपनी स्थापना के 1 वर्ष के भीतर ही 10 सीटें जीतकर सरकार में हिस्सेदारी कर ली। उसके बाद से इनेलो लगातार वनवास अज्ञातवास झेल रही है और लगातार गर्त में जाति जा रही है लेकिन ओम प्रकाश चौटाला और अभय चौटाला लगातार उसे पुनर्जीवित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं और उधर अजय चौटाला दिग्विजय चौटाला दुष्यंत चौटाला लगातार सत्ता सुख भोग रहे हैं। अब देखना होगा कि जब 2024 में विधानसभा का रण होगा तब इस श्य और मात के खेल में बाजी कौन सी पार्टी ले जाती है और चौधरी देवीलाल की यह विरासत किसके सिर पर सजी रहती है।