कुमारी शैलजा कांग्रेस की सीनियर नेता हैं, वह खाटी समाज से आती हैं, चार बार हरियाणा से लोकसभा सांसद रह चुकी हैं, यूपीए सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं। इसके अलावा 2014 के चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजा था। शैलजा हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुकी हैं, प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने पार्टी को ऊपर उठाने की भरपूर कोशिश की लेकिन हुड्डा से उनकी तनातनी भी जगजाहिर रही. जबकि अब पार्टी ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी हैं। उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़के के द्वारा छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है जिससे एक बार फिर से शैलजा का कद काफी बढ़ गया है। आज आपको कुमारी शैलजा से जुड़ी सारी बातें बताएंगे वह जानकारियां देंगे जिनसे आज तक आप अनभिज्ञ थे।

पूर्व सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री कुमारी शैलजा का जन्‍म चंडीगढ़ के नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी दलबीर सिंह के घर 24 सितंबर 1962 को हुआ। माता का नाम कलावती था, जिनका मार्च 2012 में निधन हुआ। एक स्त्री होने के बावजूद उन्होंने अपनी मां को मुखाग्नि दी थी। जिसके लिए शेल्जा खूब फेमस हुए थे। कुमारी शैलजा अभी तक अविवाहित हैं और ऑल इंडियन नेशनल कांग्रेस के कद्दावर नेता है। कुमारी शैलजा बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थीं। प्रारंभिक शिक्षा दिल्‍ली के जीसस एंड मेरी पब्लिक स्‍कूल में हुई। स्‍नातकोत्‍तर तथा एमफिल चंडीगढ़ से पंजाब विश्‍वविद्यालय से किया।

1990 में महिला कांग्रेस की अध्‍यक्ष बनकर इन्‍होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1991 में वे पहली बार 10वीं लोकसभा चुनाव में हरियाणा के सिरसा लोकसभा सीट से जीतीं और नरसिंहा राव सरकार में शिक्षा और संस्‍कृति राज्‍यमंत्री बनीं। जुलाई 1992 से सितंबर 1995 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय के शिक्षा और संस्कृति विभाग की केंद्रीय उप मंत्री रहीं। सितंबर 1995 से मई 1996 तक उक्त विभाग की केंद्रीय राज्यमंत्री रहीं। 1996 में 11वीं लोकसभा में दूसरी बार सिरसा सीट से जीत हासिल की तथा कांग्रेस संसदीय दल की कार्यकारी समिति की सदस्य बनीं।

1996 से 2004 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सचिव व प्रवक्ता पद का दायित्व संभाला। तीसरी बार 2004 में 14वें लोकसभा चुनाव में कुमारी शैलजा ने हरियाणा की अंबाला सीट का प्रतिनिधित्‍व किया तथा डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय की राज्‍यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनीं। 2005 में राष्ट्रमंडल स्थानीय सरकार फोरम के संचालक मंडल के सदस्य निर्वाचित हुईं। 2007 में दो वर्ष के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावास की 21वीं शासी परिषद की अध्यक्ष चुनी गईं। 2009 में चौथी बार 15वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं। 31 मई 2009 से 18 जनवरी 2011 तक आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन और पर्यटन विभाग की केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहीं। 19 जनवरी 2011 से 28 अक्टूबर 2012 तक आवास और शहरी गरीबी उपशमन और संस्कृति मंत्रालय की केंद्रीय कैबिनेट मंत्री पद का दायित्व संभाला। 28 अक्टूबर 2012 से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप कार्य कर रही थीं। 27 जनवरी 2014 को उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस संगठन में काम करने की इच्छा जाहिर की। शैलजा ने 2019 में अंबाला से आम चुनाव लड़ा , और उसके बाद राज्य की राजनीति में वापसी की, उस वर्ष बाद में कांग्रेस पार्टी की हरियाणा इकाई की अध्यक्ष चुनी गईं। वह 2014 से 2020 तक राज्यसभा सांसद रहे।

जब मंत्री रहते हुए शैलजा पर हुआ केस दर्ज, मार्च 2011 में केंद्रीय पर्यटन मंत्री कुमारी शैलजा पर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में केस दायर किया गया जिसमे उनपर धोखाधड़ी, आपराधिक धमकी, जालसाजी व अन्य आपराधिक षडयंत्र के आरोप लगाए। याचिकाकर्ता वकील बीएस चाहर ने कथित तौर पर आरोप लगाया थे कि शैलजा ने मिर्चपुर मामले में जाट नेताओं के खिलाफ बाल्मीकि समुदाय के लोगों को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साथ ही एक मुकदमेबाजी से खुद को बचाने के लिए उन पर दबाब बनाकर कोरे और गैर न्यायिक कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया था।, इसके इलावा पहले भी उनका नाम किसी विवाद में घसीटा गया था, साल 2014 में जब शैलजा के दिल्ली स्थित निवास पर एक लाश मिली थी, तब काफी समय तक वह चर्चाओं में थीं. हालांकि ये लाश उनकी नौकरानी के पति की थी और इस मामले में शैलजा के एक बावर्ची को गिरफ्तार भी किया गया था।

महिला कांग्रेस से शुरू हुआ था करियर, कुमारी शैलजा बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज़ थीं. प्रारंभिक शिक्षा दिल्‍ली के जीसस एंड मेरी पब्लिक स्‍कूल और स्‍नातकोत्‍तर व एमफिल पंजाब विश्‍वविद्यालय से करने के बाद 1990 में महिला कांग्रेस की अध्‍यक्ष बनकर शैलजा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की. 1991 में वे पहली बार 10वीं लोकसभा चुनाव में हरियाणा के सिरसा लोकसभा सीट से जीतीं और नरसिम्हा राव सरकार में शिक्षा और संस्‍कृति राज्‍यमंत्री रहीं।

शैलजा की जाति पूछे जाने पर हुआ था बवाल, इसके अलावा, 2015 में उन्होंने राज्यसभा में यह कहकर हंगामा मचा दिया था कि द्वारका मंदिर में उनकी जाति पूछी गई थी. एक मीडिया संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने ये दावा भी किया था कि ऐसा तब हुआ था जब वह केंद्रीय मंत्री रहते हुए मंदिर पहुंची थीं। 2019 में चखा हार का स्वाद, 2019 के आम चुनावों में यानी संसदीय चुनाव में अंबाला से भारतीय जनता पार्टी के रतन लाल कटारिया से हार गए। इसके बाद, उन्होंने राज्य की राजनीति में नए सिरे से दिलचस्पी दिखाई और अक्टूबर, 2019 में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सितंबर, 2019 में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष नियुक्त की गईं ।

हरियाणा प्रदेश की अध्यक्ष रहते हुए कुमारी शैलजा ने संगठन को मजबूत करने के लिए काफी कदम उठाए। लेकिन हुड्डा और उनके गुट की ओर से उनको कभी सहयोग नहीं मिला इसी वजह से हुड्डा के साथ उनका 36 का आंकड़ा रहा। शेल्ज़ा के पिता भी रह चुके हैं प्रदेश अध्यक्ष, कुमारी शैलजा कांग्रेस के बड़े नेता रहे चौधरी दलवीर सिंह की बेटी हैं. सिंह भी हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष और केन्द्र में कई बार मंत्री रहे हैं. पिता की विरासत को संभालने वाली शैलजा भी सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री के पदों पर रह चुकी हैं. और अब हाल ही के राज्यसभा की सदस्य रहीं है।

2022 जाते-जाते बड़ी जिम्मेदारी शैलजा कंधों पर डाल दी कांग्रेस ने, कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर बड़े बदलाव किए, उन्होंने कई राज्यों के प्रभारियों को बदल दिया, जिसमें सबसे ज्यादा अहम बदलाव कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में हुआ है, खड़गे ने छत्तीसगढ़ में पीएल पुनिया की जगह हरियाणा कांग्रेस की कद्दावर नेता कुमारी शैलजा को नया प्रभारी बनाया है, जिसे 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। अब आप सोचते होंगे कि कुमारी शैलजा को क्यों मिली बड़ी जिम्मेदारी, मल्लिकार्जुन खड़गे ने कुमारी शैलजा को बड़ी जिम्मेदारी दी है दरअसल, शैलजा को चुनाव रणनीति बनाने में माहिर माना जाता है, यही वजह मानी जा रही है कि उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रभार दिया गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कुमारी शैलजा को बड़ी जिम्मेदारी दी है दरअसल, शैलजा को चुनाव रणनीति बनाने में माहिर माना जाता है, यही वजह मानी जा रही है कि उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रभार दिया गया है।

बता दें कि 2023 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं, कांग्रेस अभी से चुनाव की तैयारियों में जुट गई है, जबकि विपक्षी पार्टी बीजेपी भी पूरी तैयारी कर रही है। ऐसे में शैलजा के आने से प्रदेश के अन्य संगठन में भी बदलाव देखने को मिल सकता है। क्योंकि कुमारी शैलजा और भूपेश बघेल की जोड़ी प्रदेश में चुनावी साल में कुछ बड़े फैसले भी ले सकती है। आप कुमारी शैलजा को किस तरह से याद करते हैं और कितना उनको जानते थे हमें जरूर बताइएगा।