हम सभी जानते हैं कि अंग्रेज़ों ने किस तरह से पूरे भारत को अपना गुलाम बना लिया था और सैकड़ों साल तक इस पर शासन करते रहे और देश की जनता को प्रताड़ित भी करते रहे लेकिन अपने देश का एक राज्य ऐसा भी है, जिसे अंग्रेज अपना गुलाम नहीं बना पाए थे या फिर यूं कहिए कि यहां पर राज करना अंग्रेजों का सपना ही बन कर रह गया था।
भारत में अंग्रेज कब आए
भारत में सबसे पहली बार अंग्रेज 24 अगस्त 1608 को सूरत पहुंचे थे। अंग्रेजों का मुख्य उद्देश्य यहां व्यापार कर भारतीय रुपयों को हड़पना और यहां के संसाधनों को अपने देश पहुंचाना था। साल 1615 में अंग्रेजों ने थॉमस रॉ को अपना राजदूत बनाकर जहांगीर के दरबार में भेजा था। इसके बाद अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने की अनुमति मिली और धीरे-धीरे अंग्रेजों ने भारत में अपना कब्जा करना शुरू किया। इसका credit रॉबर्ट क्लाइव को भी दिया जाता है।
गोवा को गुलाम नहीं बना सके अंग्रेज
हम बात कर रहे हैं समंदर के घिरे हुए बेहद खूबसूरत राज्य गोआ की। ये कभी भी अंग्रेज़ों का गुलाम नहीं रहा। ये राज्य अंग्रेज़ों के सितम से बचा रहा ऐसा नहीं है कि इस राज्य में property नहीं थी या ये खूबसूरत नहीं था, ये तो आज भी अपनी सुंदरता के लिए tourist की नंबर वन पसंद है।
अंग्रेज क्यों नहीं बना पाए गुलाम ?
ये राज्य अंग्रेज़ों के सितम से बचा रहा, उसकी वजह पुर्तगाली थे। वे अंग्रेज़ों से पहले ही साल 1498 में भारत पहुंच गए थे। वास्को डी गामा ने भारत की खोज की, उसके बाद ही पुर्तगालियों ने यहां व्यापार करना शुरू कर दिया था। इस दौरान अंग्रेज़ों और पुर्तगालियों के बीच कई युद्ध भी हुए, लेकिन कभी भी गोआ ब्रिटिशर्स के अधीन नहीं था। पुर्तगाली ही ऐसे विदेशी हैं, जो कि भारत में सबसे पहले आए और सबसे अंत में गए।
1961 में खत्म हुआ था पुर्तगालियों का राज
अंग्रेज़ जहां 1608 में भारत के सूरत में पहुंचे थे। उन्होंने bussiness करके भारतीय resources और संपत्ति को अपने देश तक पहुंचाया। धीरे-धीरे उन्होंने देश पर कब्ज़ा भी करना शुरू कर दिया। हालांकि उन्हें 1947 में उन्हें भारत को छोड़ना पड़ा। भारत का गोआ राज्य उनके अधीन नहीं रहा और जब सारा देश आज़ाद हो गया, तब भी गोआ पुर्तगालियों का गुलाम रहा। वे करीब 400 साल तक भारत में रहे। जब अंग्रेज़ों ने देश छोड़ दिया, तब भी पुर्तगालियों के हाथ में गोआ रहा। 1961 में यहां से पुर्तगालियों का राज खत्म हो गया।
भारत की आजादी के 14 साल बाद भी बना रहा था गुलाम
1947 में भारत तो अंग्रेजों से आजाद हो गया, पर गोवा को खुली हवा में सांस लेने में 14 साल लग गए।  1947 में भारत की आजादी के बाद भारतीय नेताओं को लगा कि अंग्रेजों के जाने के बाद पुर्तगाली भी यहां से चले जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पुर्तगाली अपना कब्जा जमाए हुए थे। जिसके बाद गोवा में पुर्तगाली सरकार के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया। आपको बता दें कि 19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने पुर्तगालियों को अपनी ताकत दिखाकर गोवा खाली करवाया था।
गोवा में चलाया था Operation Vijay
भारत सरकार की चेतावनी के बाद जब पुर्तगाल नहीं माना, तब 19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय अभियान’ शुरू कर गोवा, दमन और दीव को पुर्तगालियों के शासन से मुक्त कराया था। भारत सरकार के आदेश के बाद भारतीय सेना ने यहां ऑपरेशन शुरू किया था। पुर्तगाली सेना ने कुछ विरोध के बाद घुटने टेक दिए थे और पुर्तगाल के गवर्नर ने सरेंडर फॉर्म पर साइन कर गोवा छोड़ दिया था। इसके बाद से ही इसे Goa Liberation Day ‘गोवा मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
पुर्तगाल की चूक से मिला मौका
हालांकि, पुर्तगालियों की एक चूक भारत के लिए एक सुनहरा मौका बनकर उभर गई। दरअसल, 1961 के नवंबर में पुर्तगाली सैनिकों ने मछुआरों पर गोलियां बरसा दी, जिसमें एक मछुआरे की मौत हो गई, जिसके बाद हालात काफी बेकाबू नजर आने लगे। स्थिति को अपने पक्ष में देखकर पीएम नेहरू ने तत्कालीन रक्षा मंत्री केवी कृष्णा मेनन के साथ आपातकालीन बैठक की और एक सख्त कदम उठाते हुए कार्रवाई करने का फैसला किया।
36 घंटे में गोवा को मिली थी आजादी
भारतीय नौसेना की एक वेबसाइट के मुताबिक, 19 दिसंबर को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मेन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण करते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया। इसके बाद गोवा पूरी तरह से भारत में शामिल हो गया और दमन-दीव को भी आजादी मिल गई। इसके बाद 30 मई, 1987 में गोवा को एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया दया और गोवा आधिकारिक तौर पर भारत का 25वां राज्य बन गया।