जैन समाज की मांग है कि ‘श्री सम्मेद शिखर को धार्मिक स्थल ही रहने दिया जाए. इसके पर्यटन स्थल बनने से इस धार्मिक स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी. पर्यटन स्थल और तीर्थ क्षेत्र में क्या होता है अंतर, जानिए सम्मेद शिखर को लेकर क्यों मचा है बवाल। जैन धर्म के तीर्थराज सम्मेद शिखरजी को झारखंड सरकार की ओर से पर्यटन स्थल घोषित किए जाने पर बवाल मचा हुआ है. देशभर में झारखंड सरकार के इस फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. बीते मंगलवार (3 जनवरी) को सम्मेद शिखरजी की रक्षा के लिए अन्न-जल त्याग कर अनशन पर बैठे दिगंबर जैन मुनि सुज्ञेय सागर महाराज का निधन होने के बाद ये मामला और गरमा गया है. जैन समाज की मांग है कि ‘श्री सम्मेद शिखर को धार्मिक स्थल ही रहने दिया जाए. इसके पर्यटन स्थल बनने से इस धार्मिक स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी. यहां लोग मांस-शराब का सेवन करेंगे. जिसके चलते जैन धर्म के ऐतिहासिक तीर्थ स्थलों पर खतरा बढ़ेगा.’ जैन समुदाय का ये भी कहना है कि वो अपने तीर्थ स्थलों का व्यापारीकरण नहीं होने देंगे और ऐसे फैसले बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं हैं।

क्या होते है पर्यटन स्थल, आमतौर पर पर्यटन स्थलों को टूरिस्ट प्लेस के तौर पर जाना जाता है. पर्यटन स्थल के रूप में लोगों के पास हिल स्टेशन, बीच से लेकर ऐतिहासिक इमारतों तक की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट होती है. दरअसल, इन जगहों पर लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव को कम करने और अपने परिवार के साथ मौज-मस्ती के कुछ पल बिताने या अकेले ही ये तमाम चीजें करने के लिए जाते हैं. पर्यटन स्थलों पर लोगों पर किसी तरह की कोई खास पाबंदी नहीं होती है. आसान शब्दों में कहें, तो खान-पान से लेकर कपड़ों तक को लेकर कोई नियम नहीं होते हैं। अब जानिए,क्यों बनाए जाते हैं पर्यटन स्थल, पर्यटन स्थलों का निर्माण राज्य सरकारें अपने प्रदेश के नागरिकों को रोजगार और व्यवसायों को बढ़ावा देने के लिए करती हैं. किसी इलाके को पर्यटन स्थल घोषित करने के बाद सरकारें विकास योजनाओं के सहारे वहां का सौंदर्यीकरण समेत उस स्थान को पर्यटकों की पहुंच में लाने के लिए सड़क, रेल, हवाई मार्ग जैसी चीजों को विकसित करती है. इससे राज्य सरकार की आमदनी भी बढ़ती है।

अब जान ले क्या होते हैं तीर्थ स्थल?, अलग-अलग धर्मों के लिए कुछ जगहें अपने पौराणिक महत्व को लेकर समुदायों के बीच आस्था के केंद्रों के रूप में बहुत पवित्र स्थान रखती हैं. इन्हें ही तीर्थ स्थल कहा जाता है. इन तीर्थ स्थलों पर खान-पान, आचरण और पहनावे को लेकर कुछ नियम-कायदे होते हैं. पर्यटन स्थलों से अलग तीर्थ स्थलों में आध्यात्मिक माहौल में मानसिक शांति पाने के लिए आते हैं।

तीर्थ स्थल के लिए क्या करती हैं सरकारें, अलग-अलग धर्मों के तीर्थस्थलों के लिए राज्य सरकारें संरक्षण से लेकर उनकी धार्मिक शुचिता को बनाए रखने के प्रयास करती है. यूपी सरकार ने बीते कुछ वर्षों में अयोध्या, काशी और मथुरा को तीर्थ क्षेत्र घोषित किया है. इन इलाकों शराब और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर पवित्रता और आस्था को संरक्षित किया है. दुनियाभर में ऐसे तीर्थ स्थल हैं, जहां तमाम तरह के प्रतिबंध लागू होते हैं. उदाहरण के तौर पर इस्लाम धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल मक्का में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है। अब यह भी समझ लेते हैं, जैन समाज के लिए क्यों मायने रखता है सम्मेद शिखरजी? झारखंड के गिरिडीह जिले में आने वाली राज्य के सबसे ऊंचे पहाड़ पारसनाथ पहाड़ी को सम्मेद शिखरजी के नाम से जाना जाता है. सम्मेद शिखरजी पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने देह त्याग कर निर्वाण यानी मोक्ष प्राप्त किया था. इस पहाड़ी का नाम जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पारसनाथ के नाम पर है. जैन धर्म के लिए सम्मेद शिखर सर्वोच्च तीर्थ स्थल है. पारसनाथ पहाड़ी की तराई में मधुबन नाम का कस्बा बसा हुआ है। झारखंड सरकार का अजब फैसला और मचा बवाल, झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने 23 जुलाई 2022 को राज्य के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नई झारखंड पर्यटन नीति जारी की. इसके तहत पारसनाथ पहाड़ी (सम्मेद शिखर), मधुबन और इटखोरी को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया गया. झारखंड सरकार पारसनाथ पहाड़ी के एक हिस्से को वाइड लाइफ सेंचुरी और ईको सेंसिटिव जोन बनाने को लेकर कोशिशें कर रही थीं. इसे लेकर ही बवाल मचा हुआ है। केंद्र सरकार ने पारसनाथ पहाड़ी के एक भाग को वन्य जीव अभयारण्य और इको सेंसेटिव जोन तो वहीं झारखंड सरकार ने इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया है. जिसके बाद इसे लेकर विवाद शुरु हो गया। शुरू हुआ विरोध का सिलसिला, पर्यटन स्थल के रूप में नोटिफाई किए जाने पर देश-विदेश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. सरकार के इस फैसले के विरोध में राजस्थान के सांगानेर ) में अनशन करते हुए जैन मुनि सुज्ञेयसागर जी) ने मंगलवार को देह त्याग दिया. इसके बाद जैन धर्मावलंबियों का आक्रोश और उबल पड़ा है. दूसरी तरफ इस विवाद पर सियासत भी तेज हो गई है. झारखंड में सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी जेएमएम ने इस विवाद को बीजेपी का ‘पाप’ करार दिया है. दूसरी तरफ बीजेपी का आरोप है कि झारखंड की मौजूदा सरकार की हठधर्मिता से लाखों-करोड़ों जैन धर्मावलंबियों की आस्था आहत हो रही है।

क्या है सम्मेद शिखर का इतिहास-भूगोल और महत्व?

यह स्थान झारखंड के गिरिडीह जिले में है. भौगोलिक दृष्टि से देखें तो यह झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है, जिसे आमतौर पर पारसनाथ पहाड़ी के नाम से जाना जाता है. इसकी ऊंचाई एक हजार 350 मीटर है. इसे झारखंड के हिमालय के रूप में जाना जाता है. दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी इस पहाड़ी को श्री शिखर जी और सम्मेद शिखर के रूप में जानते हैं. यह उनका सर्वोच्च तीर्थ स्थल है. इस पहाड़ी की तराई में स्थित कस्बे को मधुवन के नाम से जाना जाता है. जैन धर्म में कुल 24 तीथर्ंकर (सर्वोच्च जैन गुरु) हुए. इनमें से 20 तीथर्ंकरों ने यहीं तपस्या करते हुए देह त्याग किया यानी निर्वाण या मोक्ष प्राप्त किया. इनमें 23वें तीथर्ंकर भगवान पाश्र्वनाथ भी थे. भगवान पाश्र्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है. पाश्र्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है. उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम पारसनाथ पड़ा. यह ‘सिद्ध क्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है. यहां हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं. वे मधुवन में स्थित मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ पहाड़ी की चोटी यानी शिखर पर वंदना करने पहुंचते हैं. मधुवन से शिखर यानी पहाड़ी की चोटी की यात्रा लगभग नौ किलोमीटर की है. जंगलों से घिरे पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं। जैन समुदाय को क्या है डर, जैन धर्मावलंबियों का कहना है कि पर्यटन स्थल घोषित होने से इस पूज्य स्थान की पवित्रता भंग होगी. यहां लोग पर्यटन की दृष्टि से आएंगे तो मांस भक्षण और मदिरा पान जैसी और भी अनैतिक गतिविधियां बढ़ेंगी और इससे अहिंसक जैन समाज की भावना आहत होगी. इसलिए इसे तीर्थस्थल रहने दिया जाए. केंद्र और राज्य की सरकारों ने इसे पर्यटन स्थल घोषित करने का जो नोटिफिकेशन जारी किया है, उसे वापस लिया जाए।
कैसे हो सकता है विवाद का हल?
इस विवाद का सुलझाने के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की ओर से पहल करनी होगी. अगर जैन धर्मावलंबियों की मांग पर सहमति बने तो दोनों सरकारों को अपनी गजट अधिसूचनाएं वापस लेनी होंगी. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि वे इस विषय के सभी पहलुओं से अवगत हो रहे हैं. उनकी सरकार हर धार्मिक समाज की आस्था का सम्मान करती है और ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा जिससे आस्था आहत हो. झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि जैन धर्मावलंबियों की भावनाओं और आस्था को ध्यान में रखते हुए, इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित करने के निर्णय की दोबार समीक्षा की जानी चाहिए. उन्होंने यह भी लिखा है कि इस स्थान को तीर्थ स्थल ही रखना उचित होगा। अब पीएम मोदी से किया ये आग्रह,
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अल्पसंख्यक समुदाय ने राष्ट्रपति मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र सौंपा, जिसमें दोनों घटनाओं पर नाराजगी व्यक्त की और शीर्ष नेताओं से श्री सम्मेद शिखरजी मंदिर को पर्यटन स्थल में परिवर्तित नहीं करने का आग्रह किया. उधर देश में इस फैसले के खिलाफ दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद सहित कई शहरों में जैन समुदाय के लोग सड़कों पर उतर गए हैं. राजधानी में रविवार को भारी जाम लगा और प्रदर्शनकारियों ने इंडिया गेट को जाम कर दिया. उन्होंने अपनी शिकायत के साथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने की मांग की, जिससे पुलिस को शाम तक कई लोगों को हिरासत में लेने और रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. खबर लिखे जाने तक सिर्फ जैन समाज में ही नहीं पूरे देश में उबाल है। केंद्र सरकार को इसमें जल्द ही सार्थक पहल करनी चाहिए वरना परिणाम समाज हित में नहीं होंगे।